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धर्म क्रियाओ के आधार पर भी यह अनुमान नही कर सकते है कि व्यक्ति के जीवन में धर्म आ गया: विजय रत्नसेन सुरीश्वरजी म.सा


सुंदेशा मुथा जैन भवन कोन्डितौप चेन्नई मे जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सुरीश्वरजी म.सा ने कहा कि:- सुर्य के ताप में खडे रहने से भी शरीर गर्म हो जाता है। आग के पास बैठने से भी शरीर गर्म हो जाता है। परंतु उस गर्मी को देखकर यह नहीं कहा जाता है कि वह व्यक्ति बुखार से पीड़ित है।

बुखार की गर्मी temperature को मापने का साधन है “-थर्मामीटर ! थर्मामीटर के प्रयोग से यह पता चलता है कि शरीर का तापमान कितना है?बरसात के प्रमाण को मापने के लिए भी एक यंत्र है , जिससे पता चलता है कि अमुक नगर में कितने cm या इंच बरसात हूई है। बाहर की गर्मी को मापने के लिए भी एक यंत्र है जिससे यह पता चलता है कि अमुक नगर में तापमान कितना है।

दुध मे पानी की मिलावट को मापने का भी एक यंत्र है। लेक्टोमीटर से यह पता चल जाता है कि दुध मे पानी की मिलावट कितनी है? सोने की जांच के लिए भी मशीन है जिससे पता चल जाता है कि यह शुद्ध सोना है या इसमे अन्य धातुओं की मिलावट है। बस, इसी प्रकार मात्र बाह्य धर्म क्रियाओ के आधार पर भी यह अनुमान नही कर सकते है कि व्यक्ति के जीवन में धर्म आ गया है।

यह दुनिया तो आप के बाह्य आचरण की देखकर….आपकी पूजा -पाठ-सामायिक-प्रतिक्रमण आदि बाह्य क्रियाओं को देखकर आपको धर्मी का बिरुद प्रदान कर देती है’-आप रोज मन्दिर मे जाकर पुजा करते है, आज उपाश्रय में जाकर रोज सामायिक-प्रतिक्रमण-स्वाध्याय करते है, आप गरीबों को दान करते है। बस दुनिया तो आपको “धर्मी का बिरुद दे देगी”। परंतु अनंतज्ञानी महापुरुषो ने धर्मी की व्याख्या कुछ अलग ही की है। वे मात्र व्यक्ति के बाह्य आचरण के आधार पर “धर्मी -अधर्मी “का बिरुद नहीं देते है।

धर्म का बाह्य आचरण तो व्यक्ति दंभ से भी कर सकता है। धर्मं मात्र बाह्य क्रियाकांड का विषय नही है। उसके लिए तो चाहिए-हृदय परिवर्तन “‘
जीवन में जब वास्तविक धर्म का प्रवेश होता है तब व्यक्ति की मानसिक विचारधार ही बादल जाती है भीतर की वृतियो के परिवर्तन बिना जीवन मे धर्म आ नही सकता है। सच्चे धर्मी का प्रेम वितराग प्रभु वितराग प्रभु की आज्ञा और उस आज्ञा का पालन करनेवाले संघ के प्रति होता है।

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