बुधवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषावाक्कम, चेन्नई में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एवं तीर्थेशऋषि महाराज द्वारा पर्युषण पर्व के अवसर पर ‘‘व्यवसाय की सफलता’’ विषय पर विशेष व्याख्यान आयोजित हुआ। उपाध्याय प्रवर ने बताया कि पर्युषण पर्व पर अधिक से अधिक धर्माराधना के द्वारा अपने तन, मन और चेतना को सदा-सदा के लिए निर्मल बनाएं।
यदि घड़ा बनाया जाए और उसे आग में नहीं तपाया जाए तो वह कभी भी पुन: किचड़ में बदल सकता है। मिट्टी की सारी तपस्या और सहनशीलता मिट्टी में मिल सकती है। इसी प्रकार यदि धर्माराधना करने के बाद भी उसे अपने जीवन में बनाए रखें, आचरण में ढ़ाल लेंगे तो ही जीवन की सफलता है। गोशालक यदि अंतिम समय में जो क्षमायाचना की थी वह परमात्मा से कर लेता तो कितने ही जीव भव से तर जाते।
परमात्मा ने परंपराओं को तोडक़र भी उसे दीक्षा दी लेकिन उसने उन्हीं से विश्वासघात किया, वह तो उच्चता के शिखर पर पहुंचकर पुन: गर्त की ओर चलने लगा था। उसने बहुत कड़ी तपस्याएं की, बहुत मेहनत की लेकिन सभी को उसने स्वयं ही बेकार कर दिया। इसलिए अपनी तपस्याओं को संवत्सरी की आराधना करके शिखर पर पहुंचाएं और पूर्णता को प्राप्त करें।
जो सत्य, सुंदर और प्रभावी है वही प्रभावशाली है। जिनशासन तीर्थंकरों की प्रभावशाली प्रस्तुति से ही चलता है जिससे मिथ्यात्वी भी परमात्मा के समवशरण में जाकर बिना तर्क के उन्हें स्वीकार कर भक्ति करने लगता है। जो एक बार जिनशासन का घंूट एक बार ले लेता है तो जीवन में उसका आचरण जरूर करता ही है।
आचार्य ओज, आभा मण्डल और प्रभाव ऐसा हो कि उनकी बातें यदि न जंचे तो भी ध्यान से सुनने और नमन करने की इच्छा होती है।
आज के समय में धर्म के प्रभाव को दुनिया के सामने प्रभावी तरीके से रखने की जरूरत है। इस पर्वाधिराज पर धर्म की इस प्रकार प्रस्तुति करें कि दूसरों का भी धर्म और तप करने की तड़प मन में हो जाए। मंजिल पर पहुंचने का जुनून हो जाए। सदैव प्रभावशाली प्रस्तुति का समर्थन करें, आडम्बर का नहीं।
सर्वज्ञों के पास तीर्थंकरों के समान ही ज्ञान, श्रद्धा और चरित्र होता है लेकिन सर्वज्ञों के पास मात्र वचन होते हैं और तीर्थंकरों के पास प्रभावशाली वचन होते हैं। उनके वचन दिलों की गहराई में जाकर परिवर्तन लाते हैं। आज के समय में पाप को बहुत प्रभावपशाली तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है कि उसके संपर्क में आने वाला व्यक्ति उसमें जकडऩे लग जाता है। यदि संसार को कषाय और वासना से बाहर निकालना है तो हमें धर्म और संयम को प्रभावशाली तरीके से जन-जन तक पहुंचना ही होगा। धर्म भाव और श्रद्धा से मिल सकता है लेकिन दूसरों तक प्रभाव से ही पहुंचाया जा सकता है। साधना भाव से चलती है, लेकिन संघ और समाज प्रभाव से चलते हैं। जब भी सामाजिक कार्य करें प्रभावी तरीके से करें। जो धर्म की प्रभावना करता है उसका उच्चतर पुण्य का बंध होता है।
अंतगड़ सूत्र में बताया गया है कि वासुदेव श्रीकृष्ण ने अपने प्रभाव से कितने ही भवि जीवों को अपने परिवार के सदस्यों को धर्म और मोक्ष-मार्ग पर प्रशस्त किया। यह उनका प्रभाव और प्रभावशाली प्रस्तुति ही थी कि बिना तर्क किए कितने ही जीव धर्म के मार्ग पर चले।
क्षमापर्व पर धर्म की ऐसी प्रभावना करें कि दूसरों पर भी प्रभाव पड़े। यदि परमात्मा के दर्शन को जाएं तो अकेले नहीं बल्कि दूसरों को भी साथ लेकर जाएं। भाव और श्रद्धा से स्वयं का कल्याण और शुद्धि होगी लेकिन प्रभाव से जगत का कल्याण और शुद्धि हो जाएगी। पर्युषण पर्व धर्म के पोषण का दिवस है शोषण का नहीं। इस अवसर पर अधिकाधिक पोषध, प्रतिक्रमण और क्षमापना करते हुए तीर्थंकरों के रंग में रंग जाएं।
स्वाध्याय संघ की शुरुआत करने वाले प्रवर्तक श्री पन्नालालजी महाराज की १३१वीं जन्म-जयंती पर उपाध्याय प्रवर ने कहा कि वे जिनशासन के बगीचे के ऐसे माली थे जिन्होंने धर्म के फूलों की महक को दुर्लभ स्थानों पर भी पहुंचाने का कार्य किया, उसे अमिट बना दिया। उन्होंने परंपराओं से हटकर समाज को नई दिशा दी और स्वाध्याय संघ की शुरुआत की।
जहां साधु-साध्वी नहीं पहुंच सकते वहां पर आज प्राज्ञ स्वाध्याय संघ कार्य कर रहा है। इसी से आज हमारे स्वाध्यायी ज्ञानार्जन करते हैं और इनकी संख्या दिन-प्रतिदिन कई गुना बढ़ती ही जा रही है जो प्रवर्तक पन्नालालजी महाराज की प्रभावी प्रस्तुति का परिणाम है। वे जहां पहुंचते वहां सर्व समाजों के झगड़े भी सुलट जाया करते थे। हमारा समाज उनके प्रति सदैव कृतज्ञ है और गौरवान्वित महसूस करेगा। इस अवसर पर प्राज्ञ स्वाध्याय संघ के पदाधिकारियों ने अपने भी विचारों की प्रस्तुति दी। इस अवसर पर उपाध्याय प्रवर ने अर्हम विज्जा फाउंडेशन और पैरेंटिंग शिविर से जुडऩे की प्रेरणा दी।
गुरुवार को प्रात: 7.30 बजे से कल्पसूत्र, 8.30 बजे से अंतगड़ सूत्र, 11.30 बजे आलोचना और पच्चखावणी कार्यक्रम संपन्न होगा।
15 सितम्बर को नवपद एकासन, 16 सितम्बर को मातृ-पितृ पूजन, 23 सितम्बर को सास-ससुर पूजन, 30 सितम्बर को शिखर समारोह नवकार कलश कार्यक्रम और दोपहर 2 से 4 बजे तक ध्यान का प्रशिक्षण रहेगा।
19 अक्टूबर को उत्तराध्ययन सूत्र की आराधना कार्यक्रम रहेगा। 8-10 अक्टूबर को 72 घंटे का कर्म विज्ञान का शिविर होगा। कर्म का विज्ञान और सूत्र भगवान महावीर द्वारा बताए गए हैं और आज इसे बाजार की वस्तु बनाकर विदेशी लोग बेच रहे हैं। जैन धर्म में इसे परमात्मा प्रभु ने बताया है।