चेन्नई. कोडमबाक्कम-वड़पलनी जैन भवन में विराजित साध्वी सुमित्रा ने कहा मनुष्य की मौत कैसे और कब आनी है इसके बारे में पता नहीं लगाया जा सकता्र। सभी को ये पता है कि मौत होनी है लेकिन ये नहीं पता कि मरने के बाद चारों गतियों में कौन सी गति में जाएगा।
इसलिए मनुष्य को उत्कृष्ट भावना से धर्म आराधना कर जन्म मरण के चक्कर से निकल जाना चाहिए। संयम का पालन करते हुए मनुष्य गति के बारे में अनुमान लगा सकता है। तप और तपश्या में बहुत कुछ बदलने की ताकत होती है।
संयम लेकर अपनी आत्मा को शुद्ध करने के लिए तप को धारण करना चाहिए। सिर्फ तप को धारण करने से जीवन की नैया पार नहीं होगी बल्कि तप करते समय मनुष्य के भाव उत्कृष्ट होने चाहिए।
अगर हम किसी को कुछ देते हैं तो वह निश्चय ही वापस भी आता है। अगर किसी को अच्छा देंगे तो अच्छा वापस आएगा और बुरा देंगे तो बुरा वापस आएगा। यह सब देने बाले के भाव पर निर्भर करता है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है, इसलिए अगर अच्छा खाना पसन्द है तो अच्छा खिलाना भी पसंद करना चाहिए।
पर्वराज पर्युषण सभी के लिए नई सुबह लेकर आती है। इसका ज्यादा से ज्यादा लाभ लेकर जीवन मे बदलाव करने का प्रयास करना चाहिए। धर्म आराधना कर जीवन का कल्याण किया जा सकता है।
जो इन मार्गो का अनुसरण करेंगे उन्हें कहीं भटकना नही पड़ेगा। दुनिया मे भटकने से अच्छा है कि सयम का मार्ग धारण कर जीवन को बदल लें।