चेन्नई. कोडमबाक्कम-वड़पलनी जैन भवन में विराजित साध्वी सुमित्रा ने कहा एक दिन में मनुष्य को साठ घड़िया मिलती हैं अगर उन साठ में से मनुष्य दो घड़ी भी बंद कर्मो की निर्जरा कर ले तो उसकी अट्ठावन घड़ियां अपने आप ही सार्थक हो जाएंगी।
पुण्य का उदय कभी भी हो सकता हैं। लाख कठिनाई आने के बाद भी अगर उससे निकलने के मार्ग बन जाते हैं तो यह मनुष्य के पुण्य के उदय की वजह से ही संभव है। पुण्य का उदय कब होगा इसका पता नही चलता है पर होता जरूर है।
इसलिए इस कीमती समय में दो पल भी अगर पुण्यवाणी का काम कर लिया जाय तो जीवन मे बदलाव आ सकता है। उन्होंने कहा कि जीवन मिलना आसान नही है। बहुत ही तप के बाद यह मौका मिला है। अगर इसमे पुण्य के कार्य नही कर रहें है तो पाप करने से तो बच ही जाना चाहिए। जिस प्रकार से पुन्य का उदय होने पर खुशहाली आती है, ठीक उसी प्रकार पाप के उदय होने पर सब चला जाता है।
उन्होंने कहा की चार महीने के चातुर्मास का पल जीवन मे बदलाव के लिए मिलता है। इनमें से दो महीने निकल चुके हैं बचे हुवे समय मे तो पुण्य के उदय के लिए कुछ कर लेना चाहिए। अगर इसमे भी कुछ नहीं किया तो समय निकल जायेगा और सब हाथ मलते रह जाएंगे। उन्होंने कहा कि पछताने से कई ज्यादा बेहतर आये हुवे अवसर का लाभ उठाना होता है।
सबको पता है कि मौका का लाभ नहीं लिया तो अंत मे पछताना पड़ेगा। जानते हुवे भी अगर जीवन को नहीं बदला तो जीवन का कल्याण नहीं होगा। उन्होंने कहा कि दो घड़ी भी प्रभु की बंदगी में लगा दिया तो सारी घड़िया सफल हो सकती हैं। ज्ञानी कहते हैं कि अट्ठावन घड़ी कर्म की दो घड़ी धर्म की होती है। इन दो घड़ी में मनुष्य अपने कर्मो की निर्जरा कर समय को सार्थक कर सकता है।
उन्होंने कहा कि समय सबको समान मिला है कुछ लोग उसका सही उपयोग कर सफल हो जाते हैं और कुछ व्यर्थ कर जाते हैं। सोचना आपको है कि आप इस समय को कैसे सार्थक करते हैं। जीवन मे आगे जाना है तो समय को सार्थक करना सीखना होगा अन्यथा जीवन नर्को के मार्ग पर पहुंच जाएगा। जो पुण्य साली आत्मा इन मार्गो का अनुसरण करेंगी उनका कल्याण हो जाएगा।