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धर्म के लिए उत्कृष्ट भाव जरूरी: साध्वी सिद्धिसुधा

धर्म के लिए उत्कृष्ट भाव जरूरी: साध्वी सिद्धिसुधा

चेन्नई. साहुकारपेट स्थित जैन भवन में विराजित साध्वी सिद्धिसुधा ने कहा सृष्टि में पशु-पक्षी, जल वायु सब हैं लेकिन किसी को उनके अस्तित्व का बोध नहीं है। यह बोध करने की कला सिर्फ मानव को मिली है। जिस मनुष्य को अपने अस्तित्व का बोध हो जाता है उसका कल्याण हो जाता है।

जब आत्मा का पता चल जाएगा तो आत्मा को परमात्मा बनने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। दृष्टि के हिसाब से देखा जाए तो जो मनुष्य के पास हैं वही पशु के पास भी हैं। मनुष्य की तरह ही पशु को नींद, भय, आहार समेत अन्य वस्तुओं की जरूरत होती है। दोनों में अंतर विवेक का है।

मनुष्य अपने विवेक का इस्तेमाल कर धर्म कर सकता है। मनुष्य में परमात्मा बनने की ताकत है अन्य जीवों में नहीं। साध्वी सुविधि ने कहा कर्मो का कर्ता, भोक्ता और काटने वाला सिर्फ मनुष्य ही होता है।

इसलिए सजग बन कर जो भी परिणाम सामने आए उसे सहजता से स्वीकार कर धर्म आराधना के काम करते रहना चाहिए। कर्मो का बंद करना तो बहुत आसान होता है लेकिन उस बंद को तोडऩा बहुत मुश्किल। मनुष्य जीवन में आगे तभी जाएगा जब बंद कर्मो को निर्जरा कर तोड़ेगा।

मनुष्य अपनी अज्ञानता की वजह से सुख की प्राप्ति के लिए इधर उधर भटक रहा है, जो हो नहीं पा रही है। सच्चे और शाश्वत सुख की प्राप्ति सिर्फ धर्म में हो सकती है। किसी भी काम को अगर उत्क्ष्ट भाव से किया जाएगा तो जीवन सुखी हो जायेगा।

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