जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने प्रतिदिन चलने वाली प्रवचन माला को सम्बोधित करते हुए कहा कि हम उत्तम गुण पुरषों को वन्दन नमस्कार इसलिए करते है क्योंकि उन के गुण हमारे जीवन मे भी प्रकट हो, मीठा इसलिए खाते है हमें भी मीठापन लगे, हमारे शरीर मे नमक खारा पदार्थ इसीलिए लिए जाते है कि शरीर मे खारापन पहुँच जाए! प्रत्येक किर्याए करने के पीछे एक ही उदेश्यरहता है कि वे गुण हमारे जीवन मे व्याप्त हो जाए यहाँ तक कि हम शवांस इसीलिए छोड़ते है कि हमें नया स्वांस प्राप्त हो! इसी तरह धर्म वाणी सत्संग श्रवण किया जाता है कि हमारा जीवन भी धर्म सत्संग से पूर्ण बने इसे ही सत्संग कहा जाता!
आचार्यो ने सत को आत्मा व संग को सम्पर्क बताते हुए लिखा जिससे शरीर का ममत्व भाव छुटकर आत्मा का भाव आत्मा के प्रति समर्पण जागृत हो जाए, संसार के समस्त जीवन एक आत्मा मे समर्पित हो जाते हैं! चार गति चौरासी लाख जीवों मे अगर कोई एक रुपता है तो वह आत्मा की इसकी मान्यता देने पर hi हमारे मन मे दया करुणा परोपकार पुण्य के भाव प्रगट होते है आज इस मान्यता की कमी होने से मानव मे मानवता घटती जा रही है एवं दानवता बढ़ती जा रही है शरीर से इन्सान बन गए है किन्तु इंसानियत के बिना इन्सान भी हैवान राक्षस वृति वाला बनता जा रहा है सम्पूर्ण विश्व की आज धर्म के बिना दयनीय दशा बनती जा रही है! मानव मानव का संहारक बन गया है!
सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा विधिवत भक्तामर का स्वाध्याय सस्वर किया गया एवं भक्तामर के विविध श्लोको की विवेचना दी गई! महामंत्री उमेश जैन ने सभा की और से स्वागत कर अभिन्दन किया गया, लाभार्थी परिवार द्वारा आज की सभा मे भक्तजनों को सत्कार स्वरूप प्रसाद प्रदान किया गया।