पनवेल श्री संघ में विराजित श्रमण संघीय जैन दिवाकरिया महासाध्वी श्री संयमलताजी म. सा.,श्री अमितप्रज्ञाजी म. सा.,श्री कमलप्रज्ञाजी म. सा.,श्री सौरभप्रज्ञाजी म. सा. आदि ठाणा 4 के सानिध्य में आयोजित धर्म सभा को संबोधित करते हुए महासती संयम लता ने कहा जिस वस्तु का जो स्वभाव है वही उसका धर्म है। पानी का स्वभाव शीतलता है, अग्नि का स्वभाव उष्णता, नमक का स्वभाव खारापन, शक्कर का स्वभाव मिठास, इसी प्रकार आत्मा का भी स्वभाव है ज्ञाता दृष्टा भाव यानी स्वयं को देखना, स्वयं को जानना, और स्वयं में लीन हो जाना । जो आज मैं स्वभाव में रमता है वही धर्मात्मा है।
महासती ने आगे कहा आज का मानव तप, त्याग,दान करते समय उसके प्रतिफल पर पहले विचार करता है। वहां नाम व स्वागत कराने की इच्छा रखता है। धर्म की रोशनी को आज घर घर फैलाने की महती आवश्यकता है। यदि मन में करुणा, दया, वात्सल्य नहीं तो धर्म दिखावा है। धर्म बाहर में नहीं स्वयं के भीतर में है।जो धर्म को आत्म कल्याण का साधन मानकर धारण करते हैं, धर्म उन्हें भवसागर से पार लगा देता है । महासती सौरभप्रज्ञा ने कहा क्रोध चार प्रकार के हैं। अनंतानुबंधि क्रोध -पर्वत की दरार जैसा, अप्रत्याख्यानी क्रोध – तलाब की दरार जैसा, प्रत्याख्यानी क्रोध – रेत की लकीर जैसा, संज्वलन क्रोध – पानी की लकीरे जैसा। क्रोध हमेशा दूसरों की गलतियों पर आता है, कमजोर व्यक्ति पर आता है, बलवान के आगे झुक जाता है। जब भी क्रोध आए धीरज रखते हुए कल पर टालने की आदत डाले। धर्म सभा में गोंदिया निवासी कौशल्या बाफना ने 57 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। दोपहर में धार्मिक अंताक्षरी प्रतियोगिता का आयोजन हुआ जिसमें 150 से अधिक गुरु भक्तों ने भाग लिया। गुरुवार को प्रभावशाली भगवान चंद्रप्रभु का अनुष्ठान सुबह 9:00 बजे से 10:00 बजे तक रहेगा।