महावीर कल्याणक महोत्सव एवं डूप्लीकेट्स पदाधिकारियों की नाट्य प्रस्तुति का हुआ मनोरंजक आयोजन
बेंगलूरु। पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के पांचवें दिन यहां वीवीपुरम स्थित महावीर धर्मशाला में श्रमण भगवान महावीर स्वामी का कल्याणक महोत्सव नृत्य नाटिका के साथ मनाया गया, प्राचीन एवं अर्वाधीन नारी पर प्रवचन हुआ तथा मनोरंजक डूप्लीकेट्स पदाधिकारियों का वेशधारण कर चातुर्मासिक आयोजन की रुपरेखा का ना्ट्य मंचन किया गया।
जैन दिवाकरीय शासनसिंहनी, ज्योतिष चंद्रिका साध्वीश्री डाॅ.कुमुदलताजी की पावन निश्रा में गुरु दिवाकर केवल कमला वर्षावास समिति के तत्वावधान मेें साध्वीश्री डॉ पद्मकीर्तिजी व राजकीर्तिजी के निर्देशन में महिला समिति एवं बालिका मंडल की इस प्रस्तुति का नेतृत्व उषा मूथा व संचालन रंजना गुलेच्छा ने किया। इस अवसर पर डाॅ.कुमुदलताजी ने धर्मसभा में उपस्थित बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन में धर्म की महिमा एवं नारी की गरिमा-गौरव को समझने की जरुरत पर प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा कि धर्म-संस्कृति को बचाना परिवार और समाज के कर्णधारों की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।
जीवन को आनंदित बनाने के लिए प्रत्येक प्राणी से प्रेमभावपूर्वक व्यवहार रखने की सीख देते हुए साध्वीश्री ने कहा कि धर्म, वतन, समाज एवं संस्कृति की मान-मर्यादाओं की रक्षा समय की जरुरत है।
उन्होंने सास-बहू के एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि एक व्यक्ति अथवा नारी की विसंगति पूरे परिवार एवं समाज को कलंकित करती है।
कुमुदलताजी ने नारी को समाज की शान तथा नारी बिना समाज को वीरान बतलाया। इससे पूर्व स्वर साम्राज्ञी साध्वीश्री महाप्रज्ञाजी ने कहा कि जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं।
मां लक्ष्मी, मां दुर्गा व मां सरस्वती के उदाहरणों के साथ साध्वीश्री ने इतिहास में नाम दर्ज कराने वाली विविध क्षेत्रों की उपलब्धिपकरक अनेक महिलाओं का विस्तार से बखान किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि नारी निश्चित ही पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही है, लेकिन पाश्चात्य संस्कृति की आड़ में सांस्कृतिक विरासत का भी ध्यान रखना होगा। साथ ही इस अवसर पर महाप्रज्ञाजी ने कहा कि कटु सत्य कड़वा जरुर होता है।
अपने अनेक अनुभवों को साझा करते हुए समाज सुधार के तहत संस्कृति की विकृतियों-पाश्चात्य फैशन को त्यागने व धर्म-संस्कृति की मर्यादाओं की रक्षा की प्रेरणा भी उन्होंने दी। उन्होंने यह भी कहा कि इतिहास के स्वर्णिम पन्नों को ध्यान में रखते हुए प्रभु महावीर के वंशजों एवं अहिंसा के पुजारियों के लिए अतीत के गौरव, अस्तित्व, पहचान, वजूद, सम्मान एवं परंपराओं को बचाना बेहद आवश्यक है। साध्वीश्री डाॅ.पद्मकीर्तिजी ने विभिन्न सूत्रों का वाचन करते हुए विस्तार से व्याख्या की।
उन्होंने प्रवचन श्रवण के बारे में चिंतन करते हुए उसे जीवन में अंगीकार करने, स्वदेशी अपनाने तथा भारतीय संस्कृति की रक्षा करने की सीख दी। समिति के महामंत्री चेतन दरड़ा ने धर्मसभा का संचालन किया। सहमंत्री अशोक रांका ने बताया कि इस अवसर पर महिला समिति द्वारा 14 स्वप्न की नाटिका के तहत 56 दिशाकुमारियों, 64 इंद्र-इंद्राणियों के साथ पालना झुलाने व प्रभु के जन्मोंत्सव को हर्षोल्लास से मनाया गया। सभी का आभार आवास-निवास समिति के चेयरमैन ज्ञानचंद मूथा ने जताया।