श्रुतप्रभावक मुनिप्रवर श्री वैभवरत्नविजयजी म.सा. के प्रवचन
~जहां जहां आंखों से नहीं देख सके ऐसे मिट्टी के, पानी के, अग्नि के, पवन के, वनस्पति के जीवो की रक्षा करना है वहां वहां जिनशासन है
~धर्म की फलश्रुति विशिष्ट ज्ञान (सत्य निर्णय) पर आधारित है।
~ जैन दर्शन यानी जीवन के कोई भी सुख- दुख, रोगी -निरोगी, मान-अपमान सभी अवस्था में स्वयं की आत्मशक्ति से ही जुड़ना है
~ जैन कुल मिलना आसान है लेकिन जैन दर्शन मिलना आसान नहीं है
~ द्रव्य हिंसा से भी ज्यादा फल वाली और भयानक भावहिंसा है
~हमें धर्म की क्रिया करना पसंद है किंतु स्वभाव परिवर्तन करना पसंद नहीं।
~ सबसे बड़ा धर्म यह है कि हमारे स्वभाव, विचार और व्यवहार का परिवर्तन हो।
~ प्रभु महावीर स्वामी ने जगत के सभी जीवो को सुखी बनाने के लिए सर्वप्रथम स्वयं ने ही त्याग, तप ,ध्यान और साधना से आत्मा को निर्मल बनाने का सम्यक मार्ग अपनाया है और बताया है।
~ जिस मानव के पास धर्म का ज्ञान नहीं है उसके पास क्रिया भी नहीं है
~ परम पूज्य श्रीमद् विजय राजेंद्र सुरीश्वरजी महाराज साहब ने 14 1/2साल तक अखंड रूप से ज्ञानसाधना करके विश्व को श्री अभिधान राजेंद्र कोष रुपी ज्ञान का महासागर अर्पित किया।
~ जिस मानव को ज्ञान की रुचि तीव्र है वह ज्ञान पाने के लिए हरपल जीवन की अंतिम सांस तक पुरुषार्थ करता ही है।