धर्म सभा में साध्वी जी ने कहा- धर्म के प्रति अनुराग होना चाहिए राग नहीं
Sagevaani.com @शिवपुरी। आज के समय में चारों तरफ धर्म का फैलाव नजर आता है, लेकिन इसके बाद भी लोग धार्मिक नहीं है और उनकी जीवन शैली में कोई बदलाव नजर नहीं आता तो इसका एक ही कारण है कि धर्म के स्थान पर हम सम्प्रदायवाद और गुरुवाद के कुचक्र में फंस गए हैं।
धर्म के प्रति हमें अनुराग नहीं, बल्कि राग है और इसी कारण हम भगवान को भूलते जा रहे हैं। उक्त प्रेरणास्पद उद्गार प्रसिद्ध जैन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कमला भवन में आयोजित विशाल धर्मसभा में व्यक्त किए। धर्मसभा में साध्वी वंदनाश्री जी ने कहा कि जब इंसान विषय कषाय में फंस जाता है तो धर्म आराधना का उस पर कोई असर नहीं होता। धर्मसभा में बैंगलोर से पधारीं महिला मण्डल की श्राविकाओं ने जिन वाणी का लाभ लेकर गुरुणी मैया रमणीक कुंवर जी से आशीर्वाद ग्रहण किया। धर्मसभा में उज्जैन से लिगा परिवार ने भी धर्म उपदेश और साध्वी जी की मांगलिक का लाभ लिया। प्रारंभ में साध्वी जयश्री जी ने मोरी लागी गुरु संग प्रीत, दुनिया क्या जाने… भजन का सुमधुर स्वर में गायन कर माहौल को गुरु भक्ति से परिपूर्ण कर दिया।
धर्मसभा में साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने 18 पापों में से राग और द्वेष को सबसे भयानक पाप बताया। उन्होंने कहा कि राग और द्वेष दोनों पाप एक ही सिक्के के पहलू हैं। किसी के प्रति हमें राग होता है तो स्वाभाविक रुप से दूसरे के प्रति द्वेष उत्पन्न हो जाता है। हमारे राग का दायरा भी समय-समय पर बदलता रहता है, लेकिन हमारा जीवन राग से नहीं अनुराग से परिपूर्ण होना चाहिए। उन्होंने कहा कि राग के चक्कर में हमने सम्प्रदायवाद और गुरुवाद को बढ़ावा दिया है जबकि धर्म की मूल भावना सम्प्रदायवाद के खिलाफ है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि भगवान महावीर ने एक ही धर्म का प्रतिपादन किया, लेकिन आज उनके अनुयायी सम्प्रदायवाद के चक्कर में तमाम दायरों में बंट गए हैं। हर सम्प्रदाय के अलग-अलग गुरु हो गए हैं और भावना यह हो गई है कि सिर्फ अपने गुरु का सम्मान और दूसरे गुरु को नमस्कार भी नहीं करना। साध्वी जी ने कहा कि सम्प्रदायवाद के कारण अहंकार की वृद्धि हुई है। अहंकार सबसे बड़ा पाप है। दुख की बात यह है कि धर्म स्थान भी सम्प्रदायवाद के अड्डे हो गए हैं। ऐसे में कैसे हम बीतरागता की स्थिति को प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि राग से मोह उत्पन्न होता है और मोह कषाय को जन्म देता है। श्रावक के 21 गुणों का बखान करते हुए साध्वी वंदनाश्री जी ने बताया कि श्रावक में सुदक्षता का गुण होना चाहिए। उसे अपनी बुद्धि का अच्छे कामों में इस्तेमाल करना चाहिए। सज्जनता श्रावक का विशिष्ट गुण है। धर्मसभा में साध्वी रमणीक कुंवर जी ने बताया कि जीवन में नियंत्रण और मर्यादा अत्यंत आवश्यक है। मर्यादाहीन जीवन पतन की ओर ले जाता है।
गुरुणी मैया द्वारा दी जाने वाली बड़ी मांगलिक 20 को
प्रतिवर्ष गुरुणी मैया साध्वी रमणीक कुंवर जी महाराज चातुर्मास काल में श्रावक और श्राविकाओं के कल्याण हेतु बड़ी मांगलिक सुनाती हैं जिससे भौतिक और आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में समस्याओं का निदान होता है। बड़ी मांगलिक का श्रवण और लाभ उठाने हेतु देशभर से धर्मावलंबी पधारते हैं। इसी कड़ी में शिवपुरी में गुरुणी मैया की बड़ी मांगलिक का आयोजन 20 अक्टूबर को किया जा रहा है। वार्षिक महा मांगलिक श्री श्वेताम्बर जैन श्रीसंघ के तत्वावधान में आयोजित की जा रही है। बड़ी मांगलिक हेतु पुरुष सफेद ड्रेस तथा महिलाएं गुलाबी, केसरिया परिधान पहनकर आएंगी तथा काला और डार्क कलर का इस्तेमाल नहीं करेंगी।