किलपाॅक श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ में विराजित योगनिष्ठ आचार्यश्री केशरसूरीश्वरजी महाराज के समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी म.सा. ने प्रवचन में कहा नीम का पेड़ घी, दूध, शेलड़ी रस से सींचो, फिर भी कभी मधुरता नहीं देता। लहसुन पर कर्पूर का छंटकाव कभी सुगंध नहीं देता। वैसे ही कुगुरु के पास उपासना कैसी भी करो, उसका कोई प्रभाव नहीं होता। ज्ञानी कहते हैं यदि आप धर्म का उपयोग नीजि सुखों के लिए करो, वह समझ में आता है। लेकिन अधर्म का उपयोग धर्म के लिए करो तो वह दुष्परिणाम देता है। ऐसा करने वाले लोग जो छाप छोड़ते हैं, वह थोड़े दिन अच्छा लगेगा। उसकी प्रतिक्रिया उनके खुद के ऊपर होती है क्योंकि धर्म के नाम से मैली विद्याओं का प्रयोग, वशीकरण इत्यादि कुगुरु के लक्षण है।
आखिरकार इन मैली विद्याओं की विशेषकर मृत्यु के समय उसकी पीड़ा अवश्य होती है। धर्म के विषय में चारित्रिक आत्माओं का इतिहास अमर है। अनादि काल से व्यक्ति भौतिकता में डूबा हुआ है। वर्तमान की सामग्री देव, गुरु, धर्म जो मिले हैं, वे धर्म के प्रभाव से मिले हैं। धर्म का स्थान कठिन अवश्य होता है लेकिन उसका परिणाम अच्छा आता है। उन्होंने कहा सद्गुरु शेर के जैसे होते हैं और कुगुरु लोमड़ी जैसे होते हैं। संसार के दावानल से बचाने के लिए सद्गुरु शेर का काम करते हैं। जैन धर्म के सद्गुरु का चारित्रिक प्रभाव इतना था कि वह आज भी कायम है। अहिंसा धर्म के सद्गुरु की परंपरा आज भी चल रही है।
बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रत स्वामी के च्यवन कल्याणक के अवसर पर आचार्यश्री ने कहा मुनिसुव्रत स्वामी के चार कल्याणक राजगृही में और एक कल्याणक सम्मेतशिखर में हुए। उनकी बीस धनुष की काया थी। तीर्थंकर परमात्मा का जीव तीन ज्ञान लेकर गर्भ में अवतरण होता है। उन्होंने कहा मन से चिंतन, बुद्धि से स्मरण, आत्मा से शुभ परिणाम जगते हैं। तीनों मिलकर अच्छा परिणाम देते हैं। पूर्व के देवलोककाल से वे तीर्थंकर ज्ञान लेकर अवतरित हुए। उन्होंने अपना साधनाकाल ज्यादा से ज्यादा राजगृही के आसपास बिताया। मुनिसुव्रत स्वामी के साथ एक हजार राजकुमारों ने दीक्षा ग्रहण की।
उन्होंने कहा बहुत से लोग सत्व से नहीं, संगति से टिक जाते हैं। उनके च्यवनकाल में माता को शुभ भावों के साथ चौदह स्वप्न आते हैं। ज्ञानी कहते हैं ये चौदह स्वप्न माता को कभी नहीं आए, उनमें से एक भी नहीं आए, फिर च्यवनकाल के समय ही क्यों आए, यह परमात्मा के पुण्य का प्रभाव है। परमात्मा की देशना के शब्द बहुत मधुर होते हैं। देशना हो तो मुनिसुव्रत स्वामी परमात्मा जैसी हो, इसका वर्णन नमुत्थुणं सूत्र में हुआ है। मुनिसुव्रत स्वामी ने अश्व के जीव को प्रतिबोध दिया। शनि ग्रह मुनिसुव्रत स्वामी परमात्मा के आराधक है, इसलिए शनि ग्रह के दोष का निवारण भी मुनिसुव्रत स्वामी के जाप से शक्य बनता है।