चेन्नई. जिनशासन में प्रमुख रूप से दो की चर्चा है-मार्ग और मार्ग का फल। मार्ग है- धर्म और धर्म रूपी मार्ग पर चलने का फल है- मोक्ष। मोक्ष रूपी मंजिल को पाने के 5 सौपान हैं। जिनमें सबसे पहला अहिंसा। यह विचार ओजस्वी प्रवचनकार डॉ. वरुण मुनि ने जैन भवन साहुकारपेट में प्रवचन करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा संसार में जितनी भी नदियां हैं उनका जन्म भी समुद्र से होता है और उनका समावेश भी समुद्र में ही होता है। ऐसे ही- जितनी भी धर्म रूपी नदियां हैं, वे अहिंसा रूपी समुद्र से ही जन्म लेती हैं और उसी में समाहित हो जाती हैं।
जो व्यक्ति अहिंसा का पालन करते है वे दीर्घायु (लंबी उम्र), श्रेष्ठ रूप, आरोग्य, प्रशंसा प्राप्त करते हैं। दूसरी ओर जो व्यक्ति हिंसा करते हैं। शास्त्रकार बताते हैं वे अगले जन्म में गूंगे, पंगु बनते हैं। आचार्यों ने ‘अहिंसा’ को मां के तुल्य कहा है। जैसे मां बच्चे का लालन- पालन करती है। वैसे ही अहिंसा भी इस जीवात्मा की दुर्गति में जाने से रक्षा करती है। यह ‘अहिंसा’ औषधि के समान है, जो भव रोग (संसार के जन्म-मरण) को मिटाने वाले हैं। संतों के लिए जहां प्रभु महावीर ने महाव्रत के रूप में (पूर्ण अहिंसा के) पालन का विधान दिया है, वहीं एक सद् गृहस्थ के लिए ‘अणुव्रत’ की बात कही है।
यानि एक सद्गृहस्थ भी संकल्प (इच्छा) पूर्वक किसी जीव को मारे नहीं। जैसे हमारी आत्मा है, ऐसे ही संसार के सब जीवों को मानें। हमें जैसे सुख अच्छा लगता है और दु:ख बुरा ऐसे ही संसार के सब प्राणियों को भी सुख प्रिय है और दुख अप्रिय। अत: सबको सुख पहुंचाने प्रयास करें और दुख देने से बचें। क्योंकि आप जैसा देंगे संसार का यह नियम है।
वैसा ही लौट कर आएगा। जहां तक एक सद् गृहस्थ की बात है। उन्हें किसी भी जीव को गाय, भैंस, कुत्ते आदि को कस कर बांधना नहीं। उनकी क्षमता से अधिक उन पर वजन (बोझा) लादना नहीं तथा उनके भोजन-पानी में बाधा नहीं पहुंचाना। इन बातों का एक सदगृहस्थ को अवश्य ही पालन करना चाहिए। चाहे सौंदर्य प्रसाधन हों या चमड़े की वस्तुएं, जिनमें हिंसा समाई हो, ऐसी चीजों का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए।