तिरुपुर. निलाम्बुर स्थित तेजाशक्ति इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी फॉर वुमेन परिसर में आचार्य महाश्रमण ने श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को तब तक धर्म का समाचरण कर लेना चाहिए जब तक बुढ़ापा पीडि़त न करने लगे।
धर्म का समाचरण शरीर में व्याधि उत्पन्न होने से पहले-पहले और इन्द्रिय शक्तियों के क्षीण होने से पहले-पहले कर लेना चाहिए। शरीर बूढ़ा हो जाए तो भला वह कितना धर्म का समाचरण कर सकता है।
रोग ग्रस्त शरीर भी भला कितना धर्म का अनुगमन कर सकता है और जब इन्द्रियों की शक्ति ही क्षीण हो जाए तो धर्म का समाचरण कर पाना असंभव हो जाता है।
इसलिए बुढ़ापे के पीडि़त करने से पूर्व, शरीर के व्याधिग्रस्त होने से पूर्व और इन्द्रिय शक्ति क्षीण होने से पूर्व धर्म का समाचरण कर लेने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्य ने कहा शरीर को व्याधियों का मंदिर कहा जाता है। किसको पता, कब कौन सी बीमारी लग जाए, इसलिए स्वस्थ रहते हुए धर्म की साधना के क्षेत्र में गति करने का प्रयास करना चाहिए। आंखों से दिखाई न दे, कानों से सुनाई न दे, शरीर चलने में सक्षम न हो तो धर्म की साधना कैसे हो सकती है। इसलिए शरीर के ठीक रहते और इन्द्रिय शक्ति सम्पन्नता के समय ही धर्म साधना के क्षेत्र में आगे बढऩे का प्रयास करना चाहिए और अपनी आत्मा के कल्याण का प्रयास करना चाहिए। पाप कर्मों से बचने और धर्माचरण करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्य के मंगल प्रवचन के पश्चात इंस्टीट्यूट की ऑनर तारालक्ष्मी ने अपनी हर्षाभिव्यक्ति दी।