नार्थ टाउन में गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि आत्मबन्धुओ जिन का उपासक जैन कहलाता है जिन की उपासना करने वाला श्रावक दो प्रकार के हैl एक है साधु साध्वी जो पूर्ण रूप से जिन प्ररुपित धर्म का पालन करते हैं दूसरे श्रावक श्राविका जो साम्थर्य अनुसार जिन धर्म का पालन करता हैl धर्म केवल चर्चा करने के लिए आचरण में लाने लिए है। धर्म के पालन करने में आनाकानी, किन्तु परन्तु करने से धर्म छूटने के साथ पाप-कर्म का बन्ध होता है। धर्म को जीवन में स्वीकार कर लेने पर यही धर्म सरल व सुगम हो जाता हैl
धर्म पालन करने में कठिनाई महसूस नही होती है धर्म के जीवन में आने पर पापकारी प्रवृत्तियां अपने आप छूट जाती है। क्योंकि धर्म और पाप साथ- साथ टिक नहीं सकते। निर्णय आपको लेना है कि धर्माचरण कर कर्मो का भार घटानी है या पापाचरण करके आत्मा के कर्म भार को बढ़ाना है जैसे कपास का फूल फट कर बाहर निकलता वह
हवा के वेग के साथ ऊपर उठता जाता है क्योंकि हल्का है कपास का फूल परन्तु भारी वजन वाला ऊपर की ओर गमन नही कर सकता वह नीचे ही रहता है वैसे ही भगवान कहते है। आत्मा जितनी कर्मो से हल्की होगी वह ऊपर उठेगी ऊर्ध्वगमन करेगी पर कर्मों के भार से संसार में ही भ्रमण करेगी। आत्मा आठ कर्मों के बन्ध से भारी होती है। जिस दिन कर्मो का आवरण हटेगा ये आत्मा ऊपर उठ सिद्धालय में पहुँच जायेगी इसके लिए भगवान कहते है कदम-2 पर धर्म को जीवन में उतारो ज्यादा से ज्यादा धर्म पालन करो थोड़ा सा जीवन में परिवर्तन लाना है और यदि आप ऐसा कर पाये तो आप अवश्य सच्चे जैन बन जाओगे दुर्गति में नहीं जाओगे जैन कुल में जन्म तभी सार्थक होंगे जब आपका जीवन वास्तव में जैन के अनुरूप है।
सम्यक्त्व प्राप्त करने वाला देव लोक के भोगो में लिप्त नही होता और एक दिन अवश्य अपने लक्ष्य को प्राप्त करेगा। सम्यक्त्व की प्राप्ति मनुष्य गति में ही सुलभ है अन्य योनियों में जन्म लेने पर सम्यक्त्व दुर्लभ है । इसलिए कहते है कि मनुष्य जन्म मिला तो इसका उपयोग करो सेल फोन, टीवी आदि आमोद प्रमोद में व्यर्थ मत करो। भवी जीव सुख-दुःख दोनों में धर्म को नहीं छोड़ता उसकी कथनी-करनी एक समान होती है यही भवी की पहचान है। अभवी चौदह पूर्व का ज्ञान भी प्राप्त कर ले पर कथनी-करनी में फर्क होने से अभवी मोक्ष में नहीं जा सकता। आपका आन्तरिक मन स्वयं आपकी पहचान करा देगा।
बच्चों ने नयसार से प्रभु महावीर बनने की काव्य नाटिका की प्रस्तुति दी।
कार्यकारिणी सदस्य ज्ञानचंद कोठारी ने संचालन किया और बताया कि दिनांक 31 अगस्त को प्रवचन के पश्चात रक्षाबंधन पर्व गुरुदेव के सान्निध्य में आध्यात्मिक रूप से मनाया जाएगा। सभी भाई बहन अवश्य पधारें और गुरुदेव द्वारा रक्षाबंधन पर विशेष उदबोधन व मंगल पाठ सुनें।