आगरा में वर्षावास साध्वी मानवी श्री जी म० ने अपने प्रवचन मे फरमाया धम्मो मंगल मुक्किट्ठे । धर्म उत्कृष्ट मंगल है। धर्म की आराधना सम्यग् दर्शन, सम्यग् जान और सम्यगू चारित्र से की जा सकती है।
सम्यग् दर्शन उसकी नीवं है पाया है। जिस मकान की नीव मजबूत होती है उसको गिरने का डर नही रहता है।
यदि नींव ही कमजोर हो तो मकान भी कमजोर ही है। इसी तरह सम्यग् दर्शन अगर शुद्ध रहता है। इसी रहा तो धर्म की आराधना भी शुद्ध रूपसे की जा सकेगी।