चेन्नई. धर्मास्तिकाय अमूर्त होने के कारण अज्ञात होता है। इसी प्रकार आकाशास्तिकाय का भी पूर्ण ज्ञान छद्मस्त को नहीं हो सकता। आदमी को जितना संभव हो सके, अपने ज्ञान का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। इससे आयु में वृद्धि होती है।
माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में आचार्य महाश्रमण ने कहा ठाणं’ आगम के छठे स्थान में ज्ञान की स्थिति बताई गई है। आदमी के ज्ञान की अपनी स्थिति होती है। छद्मस्त को पूर्ण ज्ञान हो पाना संभव नहीं होता। सर्वज्ञ सब कुछ जानने वाले होते हैं। उनसे दुनिया में कुछ भी अनजान नहीं है। सर्वज्ञ के लिए दुनिया में जो भी जानने योग्य है, उनसे कुछ भी अनभिज्ञ नहीं होता। सर्वज्ञ जीव और अजीव दोनों को जानने वाले होते हैं।
सर्वज्ञ आत्माओं के पास अनंत ज्ञान का भण्डार होता है। छद्मस्त अवस्था का कोई भी प्राणी पूर्णज्ञानी नहीं हो सकता। बारहवें गुणस्थान तक आदमी छद्मस्त अवस्था में होता है इसलिए वह पूर्णरूप से सर्वज्ञ नहीं हो सकता। मोहनीय कर्मों के क्षीण होने के बाद भी वह पूर्ण ज्ञान को नहीं प्राप्त कर सकता। ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्मों के क्षय के उपरान्त ही आदमी को ज्ञान और दर्शन की प्राप्ति हो सकती है। छद्मस्त आदमी धर्मास्तिकाय को भी नहीं जान पाता।
किसी को सारा ज्ञान प्राप्त हो जाए, यह अच्छी बात हो सकती है। आदमी ज्ञानार्जन के माध्यम से अपना अच्छा विकास कर सकता है। ग्रंथों, आगमों और साहित्यों के माध्यम से ज्ञानार्जन और अधिक बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। अच्छे कार्य की दृष्टि से अपने ज्ञान का अच्छा विकास करने का प्रयास करे। निर्धारित क्षेत्र में अच्छा ज्ञान प्राप्त करे तो आदमी सफलता की दिशा में आगे बढ़ सकता है।
प्रवचन के उपरान्त डॉ. धर्मचंद जैन (भीलवाड़ा) ने पुस्तक ‘भारतीय संसद : एक राजनीतिक विश्लेषण’ का लोकार्पण किया। पारसमल दुगड़ व उनकी धर्मपत्नी संपादक विमला ने ‘असाध्य रोगों का अचूक इलाज’ नामक अपनी पुस्तक आचार्य को समर्पित की जबकि गायक महेन्द्र सिंघी व अशोक परमार द्वारा अपनी सीडी ‘त्रिलोकी रा नाथ’ लोकार्पित की गई।