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धर्मसभा में आने का भी होता है प्रोटोकॉल, वैर भाव भुलाकर आओ : साध्वी नूतन प्रभाश्री जी

धर्मसभा में आने का भी होता है प्रोटोकॉल, वैर भाव भुलाकर आओ : साध्वी नूतन प्रभाश्री जी

साध्वी जी ने बताया कि स्वाध्याय सीढ़ी और ध्यान मंजिल है

Sagevaani.com @शिवपुरी। पोषद भवन में प्रसिद्ध जैन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी भगवान महावीर द्वारा बताए गए 12 तपों की सुंदर व्याख्या कर रही हैं। इसी क्रम में गुरूवार को उन्होंने दसवे तप स्वाध्याय पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि धर्मसभा से बेहतर स्वाध्याय कहां होगा। धर्मसभा में व्यास गद्दी पर बैठे साधु और साध्वी तथा धर्मप्रेमी श्रोतागण दोनों स्वाध्याय करते हैं। लेकिन ध्यान रहे धर्मसभा में आने का भी प्रोटोकॉल होता है तभी सही मायनों में स्वाध्याय हो पाएगा। उन्होंने कहा कि धर्मसभा में अपने वैर, विरोध, रंजिश तथा दूसरों के प्रति दुर्भाव को भूलकर आना चाहिए। इन कषायों को जहां जूते चप्पल रखे जाते हैं वहां रखकर धर्मसभा में आना चाहिए। साध्वी जयश्री जी ने शास्त्र का वाचन करते हुए बताया कि आत्मा दीपक की ज्योति के समान होती है। उन्होंने कहा कि जब तक देह से आसक्ति नहीं हटती तब तक आत्मा विदेय में नहीं पहुंच पाती। उन्होंने कहा कि आगम वाणी जीवन को कर्म करने से मुक्त होने का उपाय बताती है।

धर्मसभा में सबसे पहले साध्वी वंदनाश्री जी ने इस सुंदर भजन का गायन किया कि इस जहां में कर्मों का फल पाना होता है, जो जैसा करता है वैसा ही पाना होता है…। उनके बाद साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि स्वाध्याय ज्ञान का तीसरा नेत्र और परमात्मा तक पहुंचने का सूत्र है। स्वाध्याय क्या है? इसे बहुत संक्षिप्त रूप में स्पष्ट करते हुए कहा कि एक तो मैंने क्या सुना और फिर मेरे जीवन के साथ क्या है। अर्थात जो पढ़ा जाए उसे अपने जीवन में भी उतारना स्वाध्याय है। उन्होंने कहा कि धर्मसभा में अनुशासन स्वाध्याय का पहला सूत्र है। यहां भगवान की वाणी सुनने आप आए हैं तो पूरा ध्यान उसी पर केन्द्रित करो।

इधर उधर मत देखो, नींद मत निकालो। इसके बाद क्रोध हिंसा, घृणा और दुश्मनी के भावों को जूते चप्पल रखने के स्थान पर रखकर धर्मसभा में आना चाहिए। धर्मस्थल में मित्रता का भाव रखकर आना चाहिए। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर के समवशरण (धर्मसभा) में शेर और बकरी दोनों एक साथ आते थे और वे एक घाट का पानी पीते थे। यह धर्मसभा भी समवशरण है भले ही यहां भगवान नहीं है, लेकिन उनकी वाणी तो गूंजती है। इसके बाद साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कहा कि स्वाध्याय के बाद 11वां तप ध्यान है। स्वाध्याय सीढ़ी और ध्यान मंजिल है। उन्होंने बताया कि भगवान महावीर ने चार प्रकार के ध्यान बताए हैं। ये हैं आर्त ध्यान, रौद्र ध्यान, धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान। उन्होंने कहा कि पहले दो ध्यान अशुभ और बाद के दो ध्यान शुभ हैं। आर्त ध्यान विषय और रौद्र ध्यान कषायों से संबंधित है। इनसे मुक्त होकर हमें धर्म ध्यान की ओर अग्रसर होना चाहिए।

 

11 अगस्त को मनेगा सामयिक दिवस

स्थानकवासी जैन सम्प्रदाय के दूसरे आचार्य आनंद ऋषि जी म.सा. के 123वे जन्मदिवस पर 11 अगस्त को पोषद भवन में सामयिक दिवस मनाया जाएगा। इसमें श्रावक कम से कम दो और श्राविका कम से कम तीन सामयिक करेंगे। 12 अगस्त को सामूहिक जाप दिवस, 13 अगस्त को वंदना दिवस, 14 अगस्त को दान दिवस और 15 अगस्त को तप दिवस के रूप में आचार्य आनंद ऋषि जी का जन्मदिवस मनाया जाएगा।

 

जन्मदिवस पर लकी ड्रा और भोजनशाला का लिया लाभ

गुरूवार की धर्मसभा में सुनील सांड द्वारा अपनी सुपुत्री कु. श्रद्धा जैन के जन्मदिवस पर लकी ड्रा का लाभ लिया गया। इस अवसर पर भोजनशाला के लाभार्थी भी सुनील सांड बने। वहीं संजय जैन और श्रीमती रेखा जैन ने अपनी वैवाहिक वर्षगांठ धर्मसभा में मनाई और वह भी लकी ड्रा के लाभार्थी बने। लाभार्थी परिवारों ने गुरूणी मैया से आशीर्वाद लिया।

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