यहां चंद्रप्रभु जैन नया मंदिर ट्रस्ट में विराजित श्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी म. सा. ने शुक्रवार को अपने प्रवचन में कहा कि महाभारत के अनेक प्रसंगों में से एक प्रसंग धर्म निष्ठा एवं न्याय निष्ठा का विशिष्ट प्रेरक है। वह इस तरह की कौरव पांडव के युद्ध के पलों में दुर्योधन नित्य मां गांधारी के पास जाकर उनके चरण स्पर्श करके उनसे युद्ध में जय पाने के लिए आशीर्वाद मांगता था। सर पर हाथ रखते हुए माता गांधारी यह वाक्य बोलते “यत्र धर्मस्नत्र जय” यानी जहां पर धर्म है वहां विजय की प्राप्ति होती है। इतना स्पष्ट न्याय पूर्ण संदेश नित्य दुर्योधन को मिलने के बावजूद वह अपनी मनोनीति से हटा नहीं न ही कदाग्रह को छोड़ पाया।
अधर्म में ही जुड़ा रहा जबकि मां गांधारी को अधर्म यानी युद्ध में कोई रस नहीं था वे उदास थी। हम अपने जीवन में प्रस्तुत घटना से यह सीख ले कि अति विषम स्थिति में भी अधर्म का सहारा न ले बल्कि न्याय नीति में अटल रहे । याद रहे अधर्म का सहारा लेने वाले को शायद तत्काल सफलता मिल सकती है परंतु भविष्य में निष्फलता, बदनामी, संक्लेश, मिलते है जबकि निष्ठावान, न्यायवान वर्तमान में थोड़ा दुख पा लेते हैं परंतु परंपरा से परिणाम में खूब सुख पाते हैं।