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धन स्वयं ही असुरक्षित हैं: साध्वी श्री स्वर्णप्रभाजी म.सा

धन स्वयं ही असुरक्षित हैं: साध्वी श्री स्वर्णप्रभाजी म.सा

स्वाध्याय भवन, साहूकारपेट, चेन्नई मे साध्वी श्री स्वर्णप्रभाजी म.सा व श्री चिन्मयश्रीजी म.सा ने प्रवचन सभा मे कहा कि धन-वैभव सुविधाओं के साधन दे सकते हैं, पर सुरक्षा नही दे सकते हैं | धन स्वयं ही असुरक्षित हैं, धन को खुद लुटे जाने का डर हैं वो सम्पति के मालिक को क्या सुरक्षा दे सकेगा | अगर कोई समझे कि सुख सामग्री मे हैं,संबंधो में हैं, तो यह उसकी भ्रामक धारणा हैं |

संसारी व्यक्ति दुःख को दुर्भाग्य समझते हैं,वही साधु दुःख को सौभाग्य समझते हैं, कि दुःख स्वयं ही एक अवसर देते हैं, ऊर्जा देते हैं, पुनः उठने की ताकत का अवसर देते हैं | संसारी दुःख का अर्थ वस्तु का अभाव समझते हैं पर वास्तव मे दुःख कल्यानमित्र रुप हैं | दुःख से घबराए नहीं | दुःख से इतना नुकसान नही होता,जितना दुर्बुद्धि से होता हैं | दुःख से नही,दुर्बुद्धि से बचना चाहिए | दुर्बुद्धि अज्ञानता रुप हैं व अहंकार उत्पन्न करती हैं,जो कि पतन का कारण हैं | सम्यक बुद्धि सौभाग्य हैं और दुर्बुद्धि दुर्भाग्य हैं | दुःख के समय ही अपने पराये की पहचान होती हैं व दुःख के समय ही प्रभु को याद करते हैं | अतः दुःख को दुर्भाग्य नही समझे | दुर्बुद्धि आध्यात्मिकता व जीवन के विकास मे बाधक रुप हैं | दुर्बुद्धि भाव नही रखे |

श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ के कार्याध्यक्ष आर नरेन्द्र कांकरिया ने प्रवचन सभा का संचालन करते हुए महासती मण्डल के प्रति कृतज्ञता भाव प्रकट करते हुए शेखेकाल मे पुनः स्वाध्याय भवन पधारने की विनती करते हुए बताया कि इस वर्ष महासती स्वर्णप्रभा का चातुर्मास कांकरिया गेस्ट हाउस, किलपाक मे होगा | कार्याध्यक्ष ने श्रावक संघ, तमिलनाडु की ओर से रत्न स्वर्ण महोत्सव वर्ष मे एकान्तर उपवास की तपस्या करने वालो की संघ की ओर से सुखसाता पूछते हुए साधुवाद ज्ञापित किया |

प्रवचनसभा मे नार्थ चेन्नई से रायपुरम, कुररुक्पेट आदि अनेक क्षेत्रो से श्रीसंघो ने महासती मण्डल की शेखे काल पधारने की विनती की | महासती ने सभी संघो की विनतियों को ध्यान मे रखते हुए,जैसे अवसर होगा,लाभ देने की भावना बताई |

प्रवचन सभा मे श्री जवाहरलालजी अशोकजी बोहरा, शान्तिलाल जी कोठारी श्री नेमीचंदजी नरेन्द्रकुमार जी कोठारी, रुपराजजी सेठिया, उम्मेदमलजी नवरतनमलजी बागमार, कांतिलालजी तातेड़, गौतमचन्दजी मुणोत, वीरेन्द्रजी कांकरिया, अमरचंदजी छाजेड़, चम्पालालजी गौतमचन्दजी बोथरा, दीपकजी, योगेशजी, श्रीश्रीमाल महावीरचन्दजी छाजेड़, भवरलालजी, अशोकजी लोढा, इंदरचंदजी, अम्बालालजी कर्णावट सन्दीपजी ओस्तवाल बिमलचन्दजी सुराणा, रमेशजी झांगड़ा, मनिषजी जैन सहित नार्थ चेन्नई के अनेक संघो के पदाधिकारियों सहित श्रावक श्राविकाओं की सामायिक परिवेश मे उपस्थिति प्रमोदजन्य रही |

 महासतीजी श्री स्वर्णप्रभाजी म.सा ने उपवास, एकासन, नीवी आदि तपस्याओं के प्रत्याख्यान कराते हुए मांगलिक सुनाई |

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