चेन्नई. वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा प्रभु महावीर ने जिनवाणी के माध्यम से हर जीव का कल्याण करते हुए जिन बनने का मार्ग बताया। जो उस जिनवाणी पर श्रद्धा रखते हुए जिन के अनुयायी बन जाते हैं वही कहलाते हैं जैन।
उनके द्वारा बताए गए मार्ग पर चलना एवं उनके उपदेशों को जीवन में आत्मसात करते हुए उनका अनुसरण करना। केवल नाम से ही नहीं आचरण से भी जैन बनना है क्योंकि जैन की पहचान उसके आचार और विचार से है, न कि बाहृय लक्षणों से।
जैन की पहचान चित्र से नहीं उसके चरित्र से होती है। आचार और विचार जैनत्व के अनुरूप होना चाहिए द्य आचरण के साथ विचारों की शुद्धि पर भी ध्यान देना जरूरी है क्योंकि जैसा विचार होगा वैसा ही आचार होगा द्य जैनियों की जो प्रतिष्ठा है, उस प्रतिष्ठा को बनाए रखना हर जैनी का कर्तव्य होता है। यह प्रतिष्ठा एक दिन से या एक व्यक्ति से नहीं युगों की प्रतिष्ठा है।
वह प्रतिष्ठा रहेगी तभी जैनी नाम सार्थक होगा। जीवन के लिए धन चाहिए, यह बात सही है, लेकिन धन के लिए जीवन बर्बाद नहीं करना चाहिए द्य धन पाप से नहीं अपितु पुण्य से मिलता है। आप घर बैठे भी रोज पुण्य का लाभ कमा सकते हैं। सिर्फ गरीबों को आहार कराना ही अन्नदान नहीं होता, अन्न की कोई जाति नहीं होती।
अमीर और गरीब सभी पेट भरने के लिए अन्न का प्रयोग करते हैं। घर में सास-ससुर की सेवा करना, उनको जो जरूरत हो, उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करना भी एक बहुत बड़ा पुण्य है। मनुष्य की भिन्नता का कारण कर्म रूपी बीज है। रिखबचंद बोहरा, ललेश कांकरिया आदि अनेक गणमान्य गण के साथ अनेक श्रद्धालु उपस्थित थे।