साहुकार पेठ धर्मप्रभा की धर्मसभा में भक्ति का सैलाब
चैन्नई। धन दौलत से वस्तुएं खरीदी जा सकती हैं। आत्मा की शांति नही खरीदी जा सकती हैं। जितना अधिक मनुष्य के पास धन होगा उनती ही मनुष्य की इच्छाएं और लोभ बढे़गा। यदि हमें हमारे जीवन का बेड़ा पार लगाना है तो अपने लोभ लालच पर अंकुश लगाना होगा। महासती धर्मप्रभा ने चातुर्मास के पांचवें दिन साहूकार पेठ एस.एस.जैन भवन के मरूधर केसरी दरबार में धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि दौलत हमें क्षण मात्र का सुख तो दे सकता हैं, लेकिन हमारे जीवन कि अंतरदशा को नहीं बदल सकता ।
दौंलत मे ताकत जरूर लेकिन हमारी सांसें को नहीं लौंटा सकती हैं। इंसान का सबसे बड़ा शत्रु है, लोभ जो उसके जीवन में बाधाएं उत्पन्न करता हैं। लोभ एक मृगतृष्णा की तरह हैं, जो कभी शांत नही होती हैं। तृष्णा की पूर्ति के लिए मनुष्य अनैतिक होकर पाप कर्म करने से नहीं चूकता है। वो भूल जाता हैं कि उसके जीवन कि कुछ मर्यादाएं हैं।
लोभ लालसा छोड़ने पर ही मानव अपनी आत्मा की शुध्दी कर सकता हैं।
साध्वी स्नेहप्रभा ने उत्तराध्ययन सूत्र के चतुर्थ अध्ययन का वाचन करते हुये कहा कि मानव के जीवन की डोर एक बार टुट गई तो दुबारा से जुड़ने वाली नहीं हैं। इंसान धन के पीछे भाग रहा हैं किन्तु धन उसकी रक्षा नही कर पाएगा।
चाहे जितना धन हो लेकिन परलोक मे साथ में नही ले जा सकता हैं। धन और धर्म का बराबर संतुलन होगा तभी अपना हित साध कर जीवन में पुण्य बांध पाएगा । प्रवक्ता सुनिल चपलोत ने बताया कि धर्मसभा में अनेकों भाई बहनों ने उपवास आयंबिल व्रत के महासती धर्मप्रभा से प्रत्याख्यान लियें।
उन सभी तपस्वियों का एस. एस.जैन संघ के अध्यक्ष एम.अजितराज कोठारी, माणकचन्द खाबिया, सुरेशचन्द डूगरवाल, शांति लाल दरड़ा, जितेंद्र भंडारी, अशोक कांकरिया, बादलचंद कोठारी, सुभाष काकलिया, सजंय खाबिया, कमल खाबिया, मोतीलाल ओस्तवाल, रमेश दरड़ा, शम्भू सिंह कावडिय़ा, सुभाष डूगरवाल, गौतमचन्द मूथा, सज्जनराज खाबिया, सज्जनराज कोठारी, पृथ्वीराज बागरेचा, डूगरवाल आदि और महिला मंडल की बहनों ने तपस्या करने वालो का बहूमान औंर अभिनन्दन किया।
प्रवक्ता सुनिल चपलोत
एस. एस. जैन भवन साहूकार पेठ चैन्नई।