देव उठनी का सच्चा अर्थ — आत्मा का जागरण और धर्ममय जीवन की पुनः शुरुआत: भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज
श्री गुजराती जैन संघ, गांधीनगर, बैंगलोर में चातुर्मास के पावन अवसर पर विराजमान भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज द्वारा प्रेरणादायक प्रवचन में कहा कि —“देव उठनी एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है*। उन्होंने कहा कि आज केवल देव नहीं,बल्कि हमें अपने भीतर सोई हुई चेतना को भी जाग्रत करना है। जब मनुष्य अपनी आत्मा के प्रति सजग होता है, तभी सच्चे अर्थों में ‘देव उठनी’ होती है।”
मुनिश्री ने फरमाया कि यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान का प्रतीक नहीं, बल्कि आत्मिक जागरण का उत्सव है। उन्होंने कहा —“जीवन में कर्म और भक्ति, दोनों के बीच संतुलन आवश्यक है। केवल पूजा से नहीं, बल्कि शुद्ध आचरण और सच्चे संकल्पों से ही ईश्वर का साक्षात्कार संभव है।”
उन्होंने बताया कि भगवान विष्णु का यह जागरण हमें सद्कर्म, सद्भावना और सच्चे जीवन मूल्यों के प्रति प्रेरित करता है। यह पर्व हमें यह स्मरण कराता है कि जैसे दैवी शक्तियां चार माह के शयन के बाद पुनः लोककल्याण के लिए जागती हैं, वैसे ही हमें भी अपने अंदर की नकारात्मकता, आलस्य और अज्ञान से जाग्रत होकर धर्म और कर्तव्य के मार्ग पर अग्रसर होना चाहिए।. वरुण मुनि जी ने यह भी कहा कि —
“देव उठनी एकादशी का संदेश है — उठो, जागो और अपने भीतर के देवत्व को पहचानो। जब मनुष्य अपने कर्मों को शुद्ध कर देता है, तब उसका हर कार्य पूजा बन जाता है।”इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने उपस्थित होकर मुनिश्री के वचनों का लाभ लिया। प्रवचन के उपरांत भक्तों द्वारा सामूहिक भजन – जाप का धार्मिक आयोजन भी संपन्न हुआ।
प्रवचन के पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ युवा मनीषी श्री रूपेश मुनि जी के मधुर भजनों से हुआ, जिनकी स्वर लहरियों ने वातावरण को भक्ति रस से भर दिया।
कार्यक्रम के अंत में मुनिश्री ने सभी श्रद्धालुओं को संयम, सद्भावना और सेवा के मार्ग पर चलने का संदेश देते हुए कहा —“धर्म का असली अर्थ है — जाग्रति और परिवर्तन। जब जीवन में सजगता आती है, तभी सच्ची भक्ति प्रकट होती है। समाप्ति पर वातावरण भक्तिमय और आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण हो उठा।