देवता तीन कामना करते है, मानव भव, आर्य क्षेत्र, उत्तम कुल। जिस क्षेत्र में धर्म के संस्कार होते है, साधु संतों का समागम होता रहता है, जिनवाणी सुनने का मौका मिलता रहता है, वँहा आत्मा से परमात्मा बनने की संभावना हमेशा रहती है । अनार्य देश में हिंसा व्याभिचार का बोलबाला रहता है। श्रवण कुमार जब अपने माता पिता को कांधे पर काँवड़ में बैठाकर कर तीर्थयात्रा करवा रहे थे, जब एक बार उनके मन में ख्याल आया की माता पिता को यंही पर छोड़कर घर चले जाऊँ। उसने विचार किया की मैं इतने समय से माता पिता की सेवा कर रहा हूँ कभी मेरे मन में ऐसे विचार नही आए यँहा आकर ऐसे विचार क्यों आए, फिर पता चला यह अनार्य क्षेत्र है यह भूमि राक्षसों की है, यँहा की भूमि के परमाणु ही नकारात्मक है । वो जैसे ही वँहा से रवाना हुआ उसके विचार फिर शुभ हो गए।
शतावधानी पूज्याश्री गुरु कीर्ति ने महावीर कथा को आगे बढाते हुए फरमाया की *दिक्षा ली है तो एडजस्टमेंट करना ही होगा, जैसे नई बहु घर मे आती है तो उसे एडजस्टमेंट करना पड़ता है, वो एडजस्ट नही करती है तो घर में शांति नही रह पाएगी। मरिची ने भी बड़ी श्रद्धा से अन्तर्मन की गहराईयों से दिक्षा ली, पूरा ध्यान आत्मा के ऊपर है शरीर के प्रति ध्यान नही है , दिक्षा लेना मतलब सभी से मोह राग छोड़ना, शरीर का मोह भी छोड़ना पड़ता है। दिक्षा लेने से एक परिवार छूटता है, लेकिन पूरा संघ समाज परिवार बन जाता है। एक भाई बहन छुटते है लेकिन हजारों भाई बहन बन जाते है। एक बार मरिची भगवान आदिनाथ के पास जाता है और कहता है मैं साधु बन गया हूँ, आप जैसा कहते है वैसा में करता हूँ, मुझे आपके जैसा बनना है, अभी में जो हूँ उनमें आँनन्द नही आ रहा है, आपके जैसा ठाठ बाट, वैभव मुझे कब मिलेगा, मुझे साधु बनने में मोक्ष जाने में कोई रुचि नही है मुझे तो तीर्थंकर बनना है। वो ये सब बातें बड़ी सहजता से प्रभु का कहता है, सामने भगवान है वो ये भी नही सोचता है।
भगवान कहते है तुझमें योग्यता है, तू तीर्थंकर बन सकता है। मैं तुझे 20 रास्ते बताता हूँ जिस पर चलकर तू तीर्थंकर बन सकता है। अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, अष्ट प्रवचनकारी माता, तपस्वी की सेवा, तपस्या करना, व्रत, नियम का पालन करना, शुभ ज्ञान का पालन करना, सुपात्र की सेवा करना, मिथ्थात्व से दूर रहना। आदिनाथ भगवान कहते है तू ज्ञान की ऐसी आराधना कर की तुझे किसी से कुछ मांगने की जरूरत ही नही पड़े। मरिची कहता है ये मेरे बस की बात नही है कुछ दूसरा बताओ, भगवान ने कहा तू तपस्या कर शरीर को क्षीण कर सिद्ध बुद्ध बन, मरीची कहता है तपस्या मेरे बस की बात नही है, कुछ दूसरा बताओ ऐसे करते हुए भगवान ने 20 में से 19 रास्ते बता दिए लेकिन मरिची को पसंद नही आया।
अंत में भगवान ने बताया की तू तीर्थंकर की भक्ति कर, तीर्थंकर की भक्ति के अलावा दिल दिमाग में कोई और न आए, भगवान के भीतर खो जाए तो भगवान भक्त के वश में हो जाते है। मरिची कहता है हां यह रास्ता अच्छा है, औऱ फिर मरिची आदिनाथ की भक्ति में डूब जाता है। एक बार आदिनाथ भगवान शिष्यों को उपदेश देते है की कैसी भी परिस्थिति हो भयंकर से भयंकर गर्मी हो कच्चा पानी नही पिना, भले ही भूखे रहना पड़े लेकिन शुद्ध आहार से समझौता नही करना। आदिनाथ भगवान की बात सुनकर मरिची सोचता है की ये बाते मेरे लिए नही है, मुझे तो तीर्थंकर बनना है और मुझे तो भगवान ने मार्ग बता दिया है, लेकिन फिर भी भगवान ने कहा है तो कुछ बात तो जरूर है । इसी बात को सोचते हुए रात को नींद में सपना देखता है की भयंकर गर्मी और प्यास के मारे मर गया हूँ। सपना टूटने पर अपने आप को जिंदा हूँ। इस घटनाक्रम से मरिची के जीवन में क्या उथल पुथल मचेगी आगे उसके मन में क्या चिंतन चलेगा, भगवान के रहते हुए भी वो क्या गलती करेगा यह आगे पता चलेगा।