बेंगलुरु। आचार्यश्री देवेंद्रसागरसूरीश्वरजी ने मंगलवार को यहां अक्कीपेट संघ के तत्वावधान में आयोजित प्रवचन में कहा कि जब एक इंसान की मौत होती है, कई रिश्तों की मौत होती है। फिर उस इंसान की कमी महसूस करते है। अगर उस इंसान की कमी का एहसास होता है, तो कुछ वक्त के बाद हम सब उसे भूल क्यों जाते है।
उन्होंने कहा कि जिन्दगी का सबसे बड़ा उसूल बनाएं, हंसते हुए जिन्दगी का स्वागत करें और हंसते हुए ही उसे विदा करें। हर रिश्ते का एक वक्त होता है, वक्त में वह बनता है और वक्त खत्म होने पर रिश्ता भी खत्म हो जाता है।
हम चाहते हैं कि हर पल वह रिश्ता वैसा रहे, जैसा उस पल में हम उसे चाहते हैं। उम्मीद तोड़ना इंसान की फितरत है। रिश्ता चाहे पति-पत्नी का हो, भाई-बहन का या दोस्त का- उन दोनों में से कोई एक कमजोर होता है और दूसरा ताकतवर। कमजोर और ताकतवर सेहत से नहीं, सोच से।
कमजोर अपने को ताकतवर के सामने हमेशा गलत ही समझता है, चाहे वह सही भी हो। लेकिन जो खुद का कमजोर होना स्वीकार कर लेता है, वह दिल से बड़ा होता है। अपने को छोटा या कमजोर या गलत मान लेना आसान नहीं होता। जो खुद को ताकतवर मानता है, वह घमंडी होता है, उसकी सोच छोटी होती है। समझदारी इसी में है कि अपने से कमजोर किसी को मत समझो।
अच्छे संस्कारों वाला सबसे अमीर व्यक्ति, बुरे कामों वाला सबसे बड़ा गरीब। पैसा होने से कोई अमीर या गरीब नहीं बनता। इसलिए गरीब और अमीर में कभी फर्क मत करो। ईश्वर को वही प्यारा है, जो सच्चे दिल से, सच्ची भावना से अपने कर्म करता है। सबको एक जैसा समझो। घमंड और झूठ से सौ कोस दूर रहो।
देना सीखो और लेना भूल जाओ। देकर कभी जताओ नहीं, लेने के लिए कभी सताओ नहीं। कम बोलो, धीरे बोलो, पर अच्छा बोलो। ज्यादा सोचो, पर अच्छा सोचो। बुरा मत सुनो, सबकी सुनो, पर अपने मन की करो। सच्चाई का साथ दो, ईश्वर तुम्हारा साथ देंगे। दूसरे का दिल कभी मत दुखाओ। सेवा का भाव हमेशा अपने मन में रखो। किसी को अपना दुख मत सुनाओ, दुख बढ़ता है।
अपनी खुशियां बांटो, वे और बढ़ेंगी। सच्ची भावना से दुख-तकलीफ उस ईश्वर पर छोड़ दो, जिसने दिया है, वही उसका हल भी निकालेगा। चाहे वह बुरा वक्त हो या अच्छा, उसका शुक्र अदा करो, क्योंकि जीवन की हर घड़ी उसी की दी हुई है। जीवन को प्रसाद समझ कर उसे ग्रहण करना चाहिए।