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ज्ञान वाणी

दृष्टि से बदल सकती हैं सृष्टि: आचार्य श्री महाश्रमण

दृष्टि से बदल सकती हैं सृष्टि: आचार्य श्री महाश्रमण
आदमी के जीवन में  विकास की दृष्टि होनी चाहिए| जब तक दृष्टि नहीं है और कोई दृष्टि दे दे तो दृष्टि सृष्टी में बदल सकती हैं| आदमी विकास करें, न कर सके तो मूल को तो सुरक्षित रखें, उपरोक्त विचार माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में विकास महोत्सव के अवसर पर विकास-रथ के सारथी आचार्य श्री महाश्रमण ने कहे|
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि तेरापंथ के आध्यप्रर्वतक आचार्य श्री भिक्षु ने विरवा (पौधा) रौपा और स्वयं विकास किया एवं संघ को विकास की ओर अग्रसर किया| आचार्य श्री ने उत्तरवर्ती आचार्यों का मंगल स्मरण करते हुए कहा कि उन्होंने धर्म संघ की सुरक्षा की और धर्म संघ के विकास में योगभूत बने|
  आचार्य श्री ने आगे कहा कि आज भाद्रपद शुक्ला नवमीं गुरूदेव तुलसी का पट्टोत्सव हैं, वर्षो तक आज का दिन पट्टोत्सव के रूप में मनाया गया, पर *आचार्य श्री तुलसी ने अपने पद का विसर्जन करते हुए युवाचार्य श्री महाप्रज्ञजी को आचार्य पद पर पदासीन कर दिया,* तब आपश्री ने फरमाया कि महाप्रज्ञ आचार्य बन गये हैं, अब से मेरा पट्टोत्सव न मनाया जाए| इस पर आचार्य महाप्रज्ञ ने *आज के दिन की महत्ता के आधार पर इस दिन को विकास महोत्सव के रूप में स्थापित किया,* वह परम्परा चल रही हैं|
   जीवन में विकास के लिए लक्ष्य बनाना जरूरी
 आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि आदमी को वही रहना अभिष्ट नहीं हैं, आगे बढ़ना चाहता है| हमारे धर्म संघ ने विकास किया है| विकास के बारे में ध्यान दिया जाए| *एक लक्ष्य स्थिर हो जाए और उस तरफ गति हो|* जीवन में विकास के लिए लक्ष्य बनाना जरूरी है| मंजिल स्पष्ट हो तो सधे हुए कदम से आगे बढ़ने का प्रयास हो सकता है|*
   आचार्य श्री ने चतुर्विध धर्मसंघ को परिलक्षित करते हुए कहा कि एक ओर साधु – साध्वी समाज है, तो दूसरी ओर श्रावक – श्राविका समाज एवं संघीय संस्थाएं,  वे आगे बढ़े, खूब विकास करे|
 अविचार की साधना में जाने का करें विकास
  आचार्य श्री ने कथानक के माध्यम से कहा कि हम ध्यान करें| ध्यान में विचार से आगे जाने का प्रयास करें| विचार की एक सीमा हैं, पर विचार के पार, अविचार का एक अलग जगत होता है, व्यक्ति ध्यान के माध्यम से अविचार की साधना में जाने का विकास करे| विकास होता रहे, साधना चलती रहें|
आचार्य श्री ने ठाणं सूत्र दूसरे अध्याय के 452वें श्लोक का विवेचन करते हुए कहा कि बारह वैमानिक देवलोक के तीसरे वैमानिक सनत कुमार देवलोक का जघन्य (कम से कम) आयुष्य दो सागरोपम का होता है| सागरोपम संख्या के बाहर का विषय हैं| पहले और दूसरे देवलोक में पुरूष और स्त्री दोनों देव – देवियां होते हैं, पर तीसरे से लेकर सर्वार्थ सिद्ध देवलोक तक मात्र पुरुष देव ही होते हैं| स्त्री देवियां नहीं होती है|
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि जो सम्यक्त्वी है और सम्यक्त्व अवस्था में आयुष्य का बन्ध करता है, उसके स्त्री वेद का बन्धन नहीं होता, पुरूष वेद का ही बन्धन होता है, कारण उसने विशेष विकास किया है, जिससे वह तीसरे देवलोक या उससे उपर जाने का अवकाश रखता हैं| तीसरे देवलोक से नया जगत शुरु होता है|
 प्रवचन है उपकार का माध्यम
  आचार्य श्री ने साधु – साध्वी समाज को विशेष प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि विकास की दृष्टि से साधना चलती रहे| प्रवचन चलता रहे, यह उपकार का माध्यम है| नियमित, समय पर, तैयारी के साथ, आगम आधारित प्रवचन हो|
    हमारी भाषा शिष्ट, मिष्ट और विशिष्ट हो
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि हम व्यवहार कुशल रहे, *हमारी भाषा शिष्ट, मिष्ट और विशिष्ट हो| परम् प्रभु का ध्यान आँख का तारा होता है| जहां अपेक्षा हो, वहां सेवा का भाव हो, व्यवहार सद्भाव पूर्ण हो, संघीय निष्ठा बनी रहे| *शासन के प्रति निष्ठा ऐसी हो कि हम यही जीयेंगे, यही मरेंगे| पुरूषार्थ हो, पराक्रम हो| सिद्धि का उपाय हैं, अच्छा पराक्रम|
आचार्य श्री ने आचार्य श्री महाप्रज्ञजी द्वारा लिखित *विकास महोत्सव लिखत* का वाचन करते हुए कहा कि अनुशासन, अध्यात्म, अप्रमाद, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य एवं संघीय पारस्परिक सौहार्द व सेवा का भाव बना रहे, श्रावक समाज की संभाल होती रहे|
शिक्षा, साधना, आगम वाचन एवं अहिंसा का प्रचार प्रसार हैं, विकास की अक्षुण परम्परा
 आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि विकास के साधन हैं – शिक्षा, साधना, आगम वाचन एवं अहिंसा का प्रचार प्रसार, यह विकास की अक्षुण परम्परा हैं| विकास के मार्ग पर आगे बढ़े, थोड़ा रूके और पीछे मुड़ कर देखते हुए विकास की ओर अग्रसर हो| 
विकास महोत्सव के उपलक्ष्य में स्वरचित गीतिका का मधुर कण्ठ से संगान किया|
 
  संघर्ष से होता हैं विकास : साध्वी प्रमुखाश्री
विकास महोत्सव पर प्रकाश डालते हुए असाधारण साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभा ने कहा कि आज का दिन नये युग में प्रवेश का दिन है, आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने दो असंभवताओं को विकास महोत्सव का रूप देकर नई परम्परा का सूत्रपात किया| आपने आगे कहा कि तेरापंथ सदैव से विकास की ओर अग्रसर हैं| आचार्य श्री भिक्षु ने संघ को अनुशासन का मूलभूत सूत्र दिया| प्रज्ञा पुरूष जयाचार्य ने संघ में व्यवस्था का एवं पूज्य कालूगणी ने संस्कृत विद्या का विकास किया| नवमाधिशास्ता पूज्य गुरूदेव श्री तुलसी ने अनेकानेक अवदान देकर तेरापंथ धर्मसंघ का चहुंमुखी विकास किया|
साध्वी प्रमुखाश्री ने आगे कहा कि जिस व्यक्ति के भीतर उत्साह का ज्वालामुखी फटता हैं , वह विकास कर सकता हैं| जो संघर्ष की चुनौतियों को स्वीकार करता है, वह आगे विकास करता है|
आचार्य श्री तुलसी विकास के साहसी पुरुष थे : साध्वीवर्या
साध्वीवर्या श्री सम्बुद्धयशा ने कहा कि जब तक वीतराग नहीं बन जाये, तब तक विकास करना चाहिए| आपने कहा कि आचार्य श्री तुलसी विकास के साहस पुरुष थे, सृजन धर्मा थे| उन्होंने *नया चिन्तन, नई सोच, नई क्रियान्विती के आधार पर प्रशंसा और विरोध में संतुलित रहते हुए धर्मसंघ को विकास की नई ऊँचाईयों प्रदान की|
   आचार्य श्री महाश्रमणजी के नमस्कार महामंत्र के मंगल स्मरण एवं तेरापंथ महिला मंडल, चेन्नई की सामूहिक गीतिका के साथ विकास महोत्सव का शुभारंभ हुआ| साध्वी वृन्द ने तेरापंथ पंथ है विकास का महान…. गीतिका के माध्यम से भावों की अभिव्यक्ति दी| विकास परिषद् के सदस्य श्री मांगीलाल सेठिया और श्री पदमचन्द पटवारी ने धर्मसंघ के विकास की गतिविधियां निवेदित करते हुए आगे कैसे विकास करे? उसके बारे में अपने विचार रखें|
 आचार्य श्री महाश्रमणजी ने बहिर्विहारी साधु – साध्वीयों एवं समणीयों को शेषकाल में विहार का दिशा निर्देश दिया|
   विकास महोत्सव का समापन पूज्य प्रवर के श्रीमुख से सामूहिक संघगान के साथ हुआ| तपस्वीयों ने तपस्या का प्रत्याख्यान किया| कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेशकुमारजी ने किया|
        *✍ प्रचार प्रसार विभाग*
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई

स्वरूप  चन्द  दाँती
विभागाध्यक्ष  :  प्रचार – प्रसार

आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति

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