आज जिन शासन की पुकार प्रवचन माला में प्रावाधिराज पर्युषण पर्व के तीसरे दिन चारित्र दिवस पर पुज्या महासती जी मुदितप्रभा जी ने अपने अति रोचक उदबोधन में फरमाते हुए कहा की – है आत्मन आस्था का सुर्य उदित हो गया है, अब आचरण की किरण को जीवन मे लाना है।
यदि हमारा दृष्टिकोण सही बनेगा तो हमारा आचरण सही बनेगा।हमारा आचरण भी आदर्श बने और दीपक बनकर चोरो और रोशनी बढ़ाये। आज चारित्र पर अपने गूढ़ उपदेश में उन्होंने कहा कि जैसे जैसे व्यक्ति का चारित्र बदलता जाएगा वैसे वैसे साधक का जीवन उत्तम होता जाएगा। जीवन में चारित्र का हरदम पालन होना चाहिए और उसके लिए समय की कमी बहाना नहीं होना चाहिए।
अपने सार्थक संबोधन में महासती जी ने जीवन पर्यंत साधना और सामायिक को श्रेष्ठ बताते हुए कहा कि जीवन की विकृतियों को उच्च चारित्र से ही नियन्त्रित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि केवल मनुष्य ही विश्व में एकलौता प्राणी है जो मोक्ष प्राप्त कर सकता है। हमारे चारित्र का निर्माण हमारे व्यवाहर से होता है।
व्यक्ति का व्यापार व उसका खान-पान व उसके रहन सहन से चारित्र का निर्माण होता है। यदि हमें मोक्ष का रास्ता पता करना है तो हमे अपने चारित्र को को सुधारना होगा। यदि हमारा चारित्र सही नही है तो हम अपनी मंजिल पर नही पुहच सकते। माँ के उपकारों को बताते हुए कहा कि माँ तो माँ होती है।
तीन लोक का नाथ भी माँ के बिना अनाथ बन जाता है। इस दुनिया में पैसे से हर चीज मील सकती है पर माँ बाप नही। माँ है तो तीर्थकर का जन्म है। हमें इतना याद रखना है कि हमे यह शरीर मिला है तो वो माँ बाप की बदौलत मिला है।
दुनियां के सारे तीर्थ फिके है जो माता पिता को नही मानते। इस चातुमार्स प्रराभ से पचोला व बड़ी तपस्या की लड़ी चल रही है । अन्त में पुज्या महासती श्री इंदुबाला जी ने मंगलपाठ सुनाया।