चेन्नई. साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने सोमवार को कहा सेवा करना एक विशिष्ट और आंतरिक तप होता है। अपने परिवार, पड़ोसी और समाज के साथ अध्यात्म क्षेत्र में गुरुभगवंतों की सेवा करना जीवन को आनंद से भर देता है।
मनुष्य में सेवा करने का भाव के साथ लक्ष्य भी होना चाहिए। उत्तम भाव रखने वाले लोग अपने दोस्त यार को भी धर्म के कार्यो से जोडऩे का प्रयास करते हैं। ऐसा करने पर अपने आप ही जीवन में खुशी के माहौल बनने लगते है। वर्तमान में लोग थोड़े से पैसे की वजह से गलत कार्य करने में लगे हुए हैं जबकि उन्हें ऐसा कभी नहीं करना चाहिए। धर्म के मार्ग पर चलने वाला मनुष्य ऐसा कभी नहीं करेगा।
उन्होंने कहा कि मनुष्य की आत्मा में पुण्य के प्रकाश का उदय होने पर भयंकर अंधकार में भी पुण्य का मार्ग मिल जाता है। जीवन से अपने प्रत्येक बुराई को समाप्त करने का प्रयास करते रहना चाहिए। समाज के उत्थान के लिए मनुष्य को प्रत्येक नियम का पालन करना चाहिए, तभी जीवन सफल हो पाएगा। सागरमुनि ने कहा जो धर्म की रक्षा करता है धर्म भी उसकी रक्षा करता है।
संसार में आकर जो मनुष्य अपना समय सोकर बिताता है वे अंधकार में जाता है। सोने के बजाय मनुष्य को अपना कीमती पल कल्याण के मार्ग और आचरण करने में लगाना चाहिए। गलत मार्गो पर चलने की वजह से ही बढ़ती उम्र के साथ लोगों की चिंताए भी बढ़ती जा रही है।
जीवन को सार्थन बनाने के लिए व्यक्ति को मांस, मदीरा के सेवन से दूर रहना चाहिए। मित्रता में नियम नहीं तोड़ें बल्कि जैन धर्म की परंपरा को बनाए रखना चाहिए। इस मौके पर संघ के अध्यक्ष आनन्दमल छल्लाणी एवं अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे।