Sagevaani.com @शिवपुरी ब्यूरो। दु:ख अपना हो तो दूर किया जा सकता है, लेकिन उस दु:ख का क्या करें जो दूसरों के सुख से उत्पन्न होता है। इंसान अपने दु:ख से कम दूसरों के सुख से अधिक दुखित होता है, लेकिन जो दूसरों के दु:ख से दुखित होता है वह करूणावान होता है।
जबकि ईष्यावान दूसरों के सुख से दूखी होता है उक्त प्रेरणास्पद उदगार प्रसिद्ध जैन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने स्थानीय कमला भवन में आयोजित विशाल धर्मर्सभा में व्यक्त किए। धर्मर्सभा में साध्वी वंदनाश्री जी ने बरसा-बरसा सुख बरसा आंगन-आंगन सुख बरसा भजन का सुमधुर स्वर में गायन कर वातावरण को आध्यात्मिकता से परिपूरित कर दिया। साध्वी पूनम श्री जी ने अपने प्रवचन में कर्म का मर्म समझाया और कहा कि प्रत्येक व्यक्ति अपने साथ अपने कर्म लेकर जाता है।
साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने आज अपने प्रवचन में उन पुण्यों की चर्चा की जिन्हें करने के लिए धन खर्च करने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने बताया कि ऐसे चार पुण्य है जिसका आप विना धन खर्च किए अर्चन कर सकते हैं। सबसे पहले उन्होंने मन पुण्य पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इसे करने के लिए सिर्फ दूसरों के प्रति हमें शुभ भावना भानी होती है।
संसार का प्रत्येक इंसान सुखी रहे, हर घर में खुशियां बरसें, कहीं कोई दु:ख परेशानी न रहे। इस तरह से हम मन पुण्य कमा सकते हैं। मन पुण्य खुशियां छीनने का नहीं बल्कि देने का काम है। दूसरों के रास्ते से हम चुन-चुन कर कांटे साफ करें और चारों तरफ प्रेम प्यार और अपनत्व की सुगंध बिखेरे। इसके बाद उन्होंने बचन पुण्य की चर्चा करते हुए कहा कि जब भी हम बोलें अच्छा बोलें। हित, मित और प्रिय बचन बोलें। उन्होंने जैन शास्त्र का उदाहरण देते हुए कहा कि हमें कठोर, कर्कश,छेदकारी, भेदकारी, मर्मकारी, झूठे और निश्चकारी वचनों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
काया पुण्य की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हम अपनी काया से तपस्या कर सकते हैं, दूसरों की सेवा कर सकते हैं, समाजसेवा के कार्य कर सकते हैं इस तरह से हम पुण्य का अर्जन कर सकते हैं। अंत में उन्होंने नमस्कार पुण्य की व्याख्या करते हुए कहा कि अपने माता-पिता, वरिष्ठजनों, सम्मानीय और गुरूजनों का नमस्कार कर हम इस पुण्य के भागी बन सकते हैं। साध्वी रमणीक कुंवर जी ने अपने उदबोधन में कहा कि यदि हम किसी के प्रति गलत व्यवहार करेंगे, उसके अमंगल की कामना करेंगे तो हमें इसका भुगतान व्याज सहित करना होगा। इसलिए अपना मन साफ और पवित्र रखें तथा दूसरों के कल्याण की भावना मन में संजोयें। खुद के सुखी होने का यह सबसे बेहतर उपाय है।