पुरुषावाक्कम स्थित एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा हम दूसरों के साथ जो व्यवहार करते हैं वह पहले स्वयं के साथ करें। किसी की नकारात्मकता को जुबान पर मत लाओ। यदि आप उसे उजागर करते रहेंगे तो आप भी उन नकारात्मकताओं को ग्रहण कर लेंगे। दूसरे में भलाई देखने के लिए स्वयं भला बनना पड़ता है।
उन्होंने कहा परमात्मा कहते हैं कि सचित आहार से हिंसा के साथ चोरी भी लगती है। दुनिया में जैन दर्शन ही है जो सचित आहार लेने से मना करता है। पानी में त्रसकाय जीवों के अलावा पानी स्वयं भी जीव है। वह सूक्ष्म नामकर्म नहीं लेकिन सूक्ष्म जीव है। उसे अचित करने के कुछ समय बाद जल पुन: सचित हो जाता है।
पानी को छानकर उबालें, नहीं तो अपकाय के साथ त्रसकाय की हिंसा लगेगी। छानकर गरम करेंगे तो केवल अपकाय की हिंसा होगी, त्रसकाय की नहीं। जब सचित वस्तु आपके शरीर में जाती है तो एकेन्द्रिय जीव अपने ही पूर्व शरीर में बार-बार जन्म मरण-करते रहते हैं। मनुष्य, नारकी, देवता अपने शरीर में पुन: उत्पन्न नहीं होते लेकिन स्थावर के जितने एकेन्द्रिय जीव हैं वे वहीं जन्म-मरण करते रहते हैं।

सचित पानी पीया तो उनके जन्म-मरण से उत्पन्न लेश्या या वाइब्रेशन से आप प्रभावित होते रहेंगे। जो व्यक्ति सचित भोजन करता है उसके मन और शरीर में बेचैनी और उपद्रव बने रहेंगे। जैसे-जैसे शरीर की संवेदनशीलता समाप्त होती जा रही है वैसे-वैसे आदमी के मन की संवेदनशीलता समाप्त होती जा रही है।
अचित का आहार करना एक तरह से साहुकार बनना है। यदि अन्दर के उपद्रव कम हो जएंगे तो बाहर के उपद्रव भी कम हो जाएंगे। पर्युषण पर्व के अवसर पर सचित का उपयोग न करें। विवेक रखें की अपने आसपास सचित न रहें।
पर्युषण पर्व के अवसर पर समाज के सभी जनों को रेजिडेंसियल ट्रेनिंग शिविर करते हुए स्वयं को अपडेट करना बहुत जरूरी है। हमें लगना चाहिए कि यह सौभाग्यशाली अवसर मिला है। तीर्थेशऋषि ने मधुर स्वरों में गुरु गीत का संगान किया। मंगलपाठ से कार्यक्रम का समापन हुआ।