चेन्नई. कोडम्बाक्कम-वड़पलनी जैन भवन में विराजित साध्वी सुमित्रा ने कहा समय के साथ जो मनुष्य मानव भव की कीमत समझ लेता है उसका भव सार्थक हो जाता है। संसार के सुखों के अंदर ही इस कीमती भव को व्यतीत नहीं करना चाहिए बल्कि सार्थक करने का प्रयास करना चाहिए। वर्तमान में लोग अपने बजाय दूसरों की कमियां देखने में लगे रहते हैं।
यही कारण है कि सब कुछ होने के बाद भी मनुष्य सुखी नहीं रह पाता है। याद रहे जीवन सार्थक उनका ही होता है जो खुद की कमियों को तलाशते हैं और फिर बदलाव करने की कोशिश करते हैं। अगर मनुष्य दूसरों के बजाय खुद की कमी देखे और सुधार कर ले तो सफल हो सकता है।
उन्होंने कहा कि मनुष्य के दुख और सुख का कारण उसका स्वभाव है। अपने स्वभाव को बदलने की जगह दूसरी को बदलने की कोशिश करता है। जब तक मनुष्य दूसरों को बदलने की कोशिश करेगा तब तक सुखी नहीं बन सकता। दुसरो से उम्मीद करने के बाद निराशा ही मिलती है। दूसरो की बुराइयों में अपना जीवन व्यतीत करने के बाद पछतावा ही हाथ आएगा।
जब मनुष्य खुद की गलतियां देखना शुरू कर देगा तो उसे दुसरो में गलती दिखनी बंद हो जाएगी। जब तक यह स्वभाव नहीं बदला गया तब तक सुखी नहीं बन सकते। दूसरों को बदलना आसान नहीं है लेकिन खुद को बदला जा सकता है। अगर खुद को बदल लिया तो दूसरों को बदलने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी।
यदि सारी जिंदगी दूसरों को देखने में लगा दिया तो समय के साथ कीमती भव भी बर्बाद हो जाएगा। भव की कीमत को समझ कर खुद में बदलाव करने की कोशिश करें। ऐसा कर पावन समय को सार्थक किया जा सकता है।
अगर खुद नहीं बदलेंगे तो सामने बाला कभी नहीं बदल सकता है। बदलाव चाहिए तो खुद को बदलना पड़ेगा। जो इन मार्गो का अनुसरण करेंगे उनका जीवन बदल जायेगा।