जैन विश्व भारती संस्थान के अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण ने उपाधी धारकों को अनुशासन प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में अनेक तत्वों के विकास की अपेक्षा होती हैं| उनमें एक तत्व है, ज्ञान| हमारी दुनिया में पवित्रतम, सर्वोपरि तत्व है – ज्ञान| ज्ञान अपने आप में आलोक होता हैं| उसके कारण से हमारे जीवन का पथ आलोकिक हो जाता हैं| प्राचीन साहित्य में ज्ञान को असी, तलवार कहा गया है| ज्ञान एक तलवार हैं, हथियार हैं| हमें अज्ञान से लड़ने के लिए, नष्ट करने के लिए ज्ञान रूपी हथियार का प्रयोग करना चाहिए|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि जीवन में जितना-जितना ज्ञान प्रकट होता हैं, उतना-उतना अज्ञान दूर हो जाता हैं| आदमी स्वयं में ज्ञान का विकास करे और दूसरों में भी जितना संभव हो सके, ज्ञान का विकास हो, ऐसा प्रयास करें| अज्ञान का अंधकार है, इस अंधकार से डरकर नहीं बैठ कर, हमें ज्ञान के क्षेत्र में पराक्रम करना चाहिए| हमें अज्ञान रूपी अंधकार को, ज्ञान रूपी दीये जलाकर दूर भगाना चाहिए|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि जैन विश्व भारती संस्थान, जिसे परम पूज्य गुरूदेव तुलसी का एक दृष्टि से सुपुत्र कहा जा सकता हैं| एक ऐसा संस्थान जिसके साथ जैन विश्व भारती भी जुड़ी हुई है और जो एक धार्मिक संत पुरूष से जुड़ा हुआ हैं| यह मानो संस्थान का भी सौभाग्य हैं, जिसे प्रथम अनुशास्ता के रूप में परम् पूज्य आचार्य तुलसी मिले| आचार्य तुलसी स्वयं एक प्राध्यापक थे, पढ़ाते थे|
विद्या का आभूषण है विनय
आचार्य श्री ने उपाधी प्राप्त विद्यार्थीयों को विशेष पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि इस संस्थान के विद्यार्थीयों में ज्ञान के साथ साथ आचार और संस्कार भी झलकना चाहिए| विद्यार्थी यह सोचे कि ज्ञान की एक निष्पत्ति आचार के साथ भी होनी चाहिए| विद्या का आभूषण है विनय| आदमी के जीवन में विनय हैं तो विद्या आभूषित, विभूषित और सुशोभित हो जाती हैं| विद्यार्थीयों के जीवन में विद्या विकसित हुई हैं| उन्हें और आगे ज्ञान के क्षेत्र में उड़ान भरने का प्रयास करते रहना चाहिए|
शिक्षा के लिए सरकार और जनता जागरूक
आचार्य श्री ने आगे कहा कि मैं पद यात्रा करता हूँ, देखता हूँ, कि विद्या संस्थानों की इमारते जगह जगह मिलती है और मैं आशा करता हूँ वहां ज्ञान का अर्जन कराया जाता हैं, किया जाता हैं| यानि लगता है सरकार भी शिक्षा के प्रति जागरूक है और जनता भी जागरूक है| इस शिक्षा के साथ साथ भारत के विद्यार्थीयों में नैतिक मूल्यों के प्रति निष्ठा अच्छी रहे| तो वह शिक्षा और ज्यादा उपयोगी बन सकती हैं|
राजनीति हैं बहुत आवश्यकतम्
आचार्य श्री ने आगे कहा कि राजनीति बड़ी उपयोगी हैं, बहुत आवश्यकतम हैं| राजनीति में कैसे मूल्यवत्ता रहे? मूल्यवत्ता जितनी अच्छी रहेगी, राजनीति ज्यादा अच्छा काम कर सकेगी, अच्छी सफलता को प्राप्त हो सकेगी| यह भारत का मानो सौभाग्य हैं कि इसे संतों का ऋषि, महर्षियों का सान्निध्य मिलता रहा हैं| कही कही राजनीति को भी संतों के पथदर्शन की अपेक्षा पड़ सकती हैं| राजनीति में काम करने वाले लोगों को संतों की ओर से प्रबोधन, संबोधन, उद्बोधन, पथदर्शन यदा कदा मिलता रहता है तो वे राजनीति में और ज्यादा सफल हो सकते हैं|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि शिक्षानीति, राजनीति में अहिंसा का, मूल्यवत्ता का, नैतिक का प्रभाव हो, ये नीतियाँ एक तरह से आध्यात्मिकता और नैतिकता से प्रभावित हो| आज राष्ट्रीय के लिए भौतिक के लिए आर्थिक विकास भी जरूरी हैं| इन दोनों विकासो के साथ साथ नैतिक मूल्यों के प्रति जनता में, सरकार में, सब में निष्ठा का भाव रहे, साथ में आध्यात्मिकता का, संतो का प्रभाव बना रहे|
नैतिकता का एक बड़ा अंग हैं आर्थिक शुचिता
आचार्य श्री ने आगे कहा कि नैतिकता आदमी के व्यवहार में रहे| नैतिकता का एक बड़ा अंग हैं आर्थिक शुचिता| न्यायनीति, नैतिकता से जो पैसा अर्जित किया जाता है, वह अर्थ है और अन्याय, अनैतिकता, अनीति से जो पैसा अर्जित किया जाता है, वह अर्थाभास, अशुद्ध पैसा होता हैं| भले राजनीति का क्षेत्र हो, भले शिक्षा, समाज या अन्य, सभी क्षेत्रों में आर्थिक शुचिता को महत्व मिले, तो मेरा सोचना है भारत ओर आगे बढ़ सकेगा| भारत संतो की भूमि रहा हैं और आज भी एक तरह से संतो की भूमि हैं, ऐसे देश में तो ओर ज्यादा नैतिकता, धर्म, आध्यात्मिकता का प्रभाव बढ़ता रहे|
कल्चर के नाम पर नहीं फैलाए कचरा : श्रीमती सावित्री जिन्दल
कुलाधिपति श्रीमती सावित्री जिन्दल ने संस्थान के समस्त सदस्यों, विद्यार्थी को संकल्प दिलाते हुए विद्यार्थी से कहा कि शिक्षा की डिग्रीयां आपके माता पिता के द्वारा दी गई फीस की रसीदे भर हैं| गुरू और शिष्यों के बीच में गंभीरता, आदर, स्नेह और अच्छा नागरिक बनना ही वास्तविक शिक्षा हैं| ऐसी शिक्षा लेने में आप सफल हो गये, तो समझ लेना कि सारे विश्व की किताबे और सेलेबस आपने पढ़ लिये| उन्होंने जोर देकर कहा कि कल्चर के नाम पर कचरा नहीं फैलाए| आज आपको डिग्री नहीं, राष्ट्रीय निर्माण, चरित्र निर्माण में योगदान करने का दायित्व सौपा जा रहा हैं|
इस अवसर पर श्रीमती जिन्दल ने श्री ओ पी जिन्दल का स्मरण करते हुए कहा कि जिम्मेदार नागरिक बनाने वाली शिक्षा के हिमायती थे| उन्होंने सिर्फ उधोग ही नहीं लगाया, बल्कि शिक्षा के अनेक संस्थान भी खोले और इसकी प्रेरणा उन्हें गुरूवर तुलसीजी से ही मिली| वे कहते थे कि शिक्षा के माध्यम से ही समाज में सुख, शांति, समृद्धि का राज स्थापित हो सकता हैं|
अध्यापक राष्ट्रीय निर्माण में नीव का पत्थर
श्रीमती जिन्दल ने कहा कि अध्यापक राष्ट्रीय निर्माण में नीव का पत्थर होता हैं| अध्यापक एक मोमबत्ती, दीये की भांति होता हैं, जो अपने आस पास शिक्षा का प्रकाश फैलाता हैं|
शिक्षा एक पथ हैं, गंतव्य नहीं : साध्वी प्रमुखाश्री
साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभा ने कहा कि वह विद्यार्थी अकल्पनीय काम कर सकता हैं, जिसमें ध्येय, विवेक, लगन, निष्ठा और निरन्तर प्रयास होता हैं, वहां कठिन से कठिन काम भी सफल हो सकता हैं| शिक्षा एक पथ हैं, गंतव्य नहीं| जिन जिन विद्यार्थीयों ने उपाधी प्राप्त की है, स्वर्ण पदक प्राप्त किया है, वे एक पड़ाव तक पहुंचे हैं, लेकिन मंजिल दूर हैं| उन्हें यह समझना है कि शिक्षा के माध्यम से सौहरत, ऐश्वर्य, सत्ता और पद प्राप्त किया जा सकता हैं| लेकिन उनसे भी आगे “उन क्षेत्रों की तलाश हो, जहां कुछ मौलिक किया जा सके, श्रेष्ठता प्राप्त की जा सके और जीवन को उपर उठाने की राह खुल सके|” शिक्षा ऐसी हो जहां से जीवन के रूपांतरण की ज्योत निकले और जीवन की समग्रता का बोध हो|
कुलपति श्री बच्छराज दुगड़ ने संस्थान का परिचय देते हुए कहा कि यह विश्वविद्यालय अन्य विश्वविद्यालयों से इस रूप में अलग है कि क्योंकि इसकी स्थापना इस युग के महान आचार्य श्री तुलसी ने की| यह संस्थान उनके जैन विद्या के विकास एवं चरित्र निर्माण के स्वप्न को धरती पर साकार करने का एक प्रयत्न हैं| संसद से सड़क तक शुचिता स्थापित करने की दृष्टि से यह संस्थान प्रयासरत हैं| संस्थान की विभिन्न गतिविधियों एवं पूर्व कुलपतियों को याद करते हुए उनके द्वारा संस्थान के दिये गये अमूल्य योगदान को बताया|
कुलाधिपति ने दीक्षांत समारोह प्रारम्भ करने की अनुमति और कुलपति ने समारोह प्रारम्भ की घोषणा की| संस्थान की कुलाधिपति एवं कुलपति ने इस वर्ष पी एच डी शौधार्थीयों एवं एम ए, एम ए सी उत्तीर्ण विद्यार्थी को प्रशस्ति पत्र, मेडल के साथ उपाधी प्रदान की गई| कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रीय गान के बाद नमस्कार महामंत्र के मंगल स्मरण के साथ हुई| कार्यक्रम का कुशल संचालन कुलसचिव विनोद कंकड़ ने किया| अतिथियों का सम्मान किया गया|
*✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई*
स्वरूप चन्द दाँती
विभागाध्यक्ष : प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति