जोधपुर में चातुर्मास के प्रवचन के दौरान उपाध्याय प्रवर रविंद्र मुनि जी ने कहा कि दुख के क्षणों में व्यक्ति को अपनी भावनाओं पर संयम रखना चाहिए। व्यक्ति को प्रतिशोध की भावना नहीं रखनी चाहिए इससे समस्या बढ़ती है। दुख में व्यक्ति को घबराना नहीं चाहिए, ऐसे समय में अपने मनोबल को मजबूत रखना चाहिए। जैन उपन्यास में अनेक भव में कहानियां प्रचलित हैं। बैर कभी व्यक्ति को शांति से नहीं रहने देता है।
गैंगवार भी वैर प्रवृत्ति का उदाहरण है। इस पर पूर्ण विराम लगाने की जरूरत है। यह तभी संभव है जब हम आपस में समझौता कर ले। कभी खून से सने कपड़े को खून से नहीं धोया जा सकता। उसे साफ करने के लिए साफ पानी की आवश्यकता होती है। उसी प्रकार बैर से बैर नहीं खत्म होता उल्टे बढ़ता जाता है।
उपाध्याय प्रवर ने उग्र हिंदूवाद के बढ़ते चलन पर हुए चिंता जाहिर करते हुए कहा कि आज जैन समाज की नई नई पीढ़ी को उग्र हिंदू वाद का शिकार हो रही है। जैन समाज की नई पीढ़ी आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, भाजपा के सदस्य बन रहे हैं। यहां कुछ लोग अपने राजनीतिक फायदे के लिए इन लोगों को उग्र हिंदू वाद सिखा रहे हैं। इससे हमारा समाज जहरीला हो रहा है। जिसके फल स्वरुप एक समुदाय के लोग दूसरे समुदाय को मारने पर उतारू है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले 20 सालों में भारत भी तालिबान की तरह हो जाएगा।
कछुआ जैसे अपने को कवच के अंदर छुपा कर खुद को बाहरी खतरे से बचा लेता है उसी प्रकार मनुष्य को भी अपने गुस्से पर परिस्थिति के अनुसार काबू करना चाहिए। अध्यात्म योग हमें ऐसी कला सिखाता है जो हमें बाहर के पापमय प्रवृत्तियों से बचा लेता है। आध्यात्मिक योग का मतलब अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण करना है।