चेन्नई. गुरुवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषावाक्कम, चेन्नई में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एवं तीर्थेशऋषि महाराज के प्रवचन का कार्यक्रम आयोजित किया गया। उपाध्याय प्रवर ने जैनोलोजी प्रैक्टिकल लाइफ में कहा कि इस पूरे संसार का मूलाधार जो है वही पूरा संसार है, इसे खोजने का परमात्मा कहते हैं। संसार का जन्म आपके अन्तर के भावों, सोचने के तरीकों से होता है। यदि बीज को समाप्त कर दिया जाए तो पेड़ और फल-फल आ ही नहीं पाएंगे। इसी प्रकार इस संसार के मूलरूपी भय, लोभ, मान, माया के मूल को पहचानकर उनका त्याग करें। दु:खों से दूर नहीं भागें बल्कि दु:ख होने के कारण को जानकर उसको दूर करें।
जब स्वयं से ज्यादा ज्ञान वाले व्यक्ति के साथ रहते हैं तो आपके ज्ञान में वृद्धि होती है और कम ज्ञान वाले चापलूस लोगों के साथ रहोगे तो आपकी एनर्जी भी वैसी ही हो जाएगी। ज्ञानी व्यक्ति आपको आपकी कमियों बताएगा और चापलूस आपके अहंकार में वृद्धि कर आपको गफलत में ले जाएगा। परमात्मा ऐसे मूर्खों के संग से बचने की प्रेरणा देते हैं। इसलिए वस्तुस्थिति को समझें और वास्तविकता को पहचानें।
उपाध्याय प्रवर ने बताया कि भगवान महावीर ने पहले आचार सीखने को कहा है और उसके बाद फिलोसॉपी। धर्म को पहले अपने आचरण में उतारो उसके बाद आपका विजन स्वत: स्पष्ट होता चला जाएगा। जीवन में धर्म को कैसे सहज ही आचार में लाया जा सकता है इसका सरल वर्णन परमात्मा ने आचारांग में किया है।
उपाध्याय प्रवर ने कहा कि जो व्यक्ति अपने समान ही दूसरे जीवों के सुख-दु:ख को समझता है वही आचरण में शुद्धि कर सकता है, वही अहिंसा प्रेमी है। जब आप किसी से कुछ छीनोगे तो आपसे भी कोई दूसरा जरूर छीनेगा। वर्तमान में संसार को महावीर के इस सिद्धांत का अनुकरण करने की कड़ी आवश्यकता है।
जो व्यक्ति संयमी सोच वाला होता है, उसके विचारों से ऐश्वर्य झलकता है उसकी प्रज्ञा के सारे दरवाजे खुल जाते हैं। आप जैसे-जैसे धर्म को आचरण उतारते जाओगे आपका दृष्टिकोण स्पष्ट होता जाएगा। परमात्मा कहते हैं कि आचार में रमण से जिसका ज्ञान सर्वग्रहण को समर्थ बनता है तो वह पाप-कर्म की खोज नहीं करता।
वह छहकाय जीव के आरंभ सम्भारंभ से बच जाएगा। आप शांति की खोज करोगे तो शांति पाओगे, और अशांति खोजने वाले को अशांति मिलती है। आप पाप की खोज को बंद करो यह भगवान महावीर का आदेश है।
श्रेणिक चारित्र में बताया कि मुनि राजा को लावारिश होने का बोध कराते हैं और संसार में सच्चे और झूठे संतों में अन्तर समझाते हैं और राजा को वास्तविकता का ज्ञान होता है। वह मुनि से अपनी गलती की क्षमायाचना कर महल में जाकर चेलना के समक्ष अपनी गलतियां स्वीकारता है तो वह मुनि और समस्त प्रजा के समक्ष गलतियां स्वीकारने को कहती है। राजा अपने पूरे प्रजाजनों के साथ मुनि से क्षमपना को जाता है जिसे सारी प्रजा देखती है और पूरा माहौल बदल जाता है।
राजा अपने राज्य में हिंसा पर पूरी तरह प्रतिबंध लगवाता है। श्रेणिक के इस भक्तिभाव और श्रद्धा को देखकर स्वर्ग में इन्द्र प्रशंसा करता है और एक देव ईष्र्यावश आकर राजा की परीक्षा लेता है और राजा पर प्रसन्न होकर उन्हें उपहार देता है।
तीर्थेशऋषि महाराज ने राजा दशरथ का बाण श्रवणकुमार के लगने व उसकी मृत्यु होने की बात दशरथ द्वारा पता चलने और श्रवण के माता-पिता दशरथ को श्राप देते हुए प्यासे ही प्राण त्याग देने का प्रसंग बताया। उन्होंने बताया कि जिसे आप कष्ट पहुंचाते हैं, उसके रोम-रोम से आपके बददुआ निकलती है, इसलिए कभी किसी को कष्ट न पहुंचाएं, किसी का सहारा न छीनें। संसार के सभी जीवों में आप अपने समान ही चेतना का अनुभव करें, किसी के भी दु:ख का निमित्त न बनें।
जो व्यक्ति हिंसा करता है वह स्वयं अपने जीवन में दु:खों को आमंत्रण देता है और जो हिंसा से बचकर दूसरों को सुखी बनाता है, उसे सुखी बनाने में सारी कायनात लग जाती है।
चातुर्मास समिति के अध्यक्ष अभय श्रीश्रीमाल, चेयरमेन नवरतनमल चोरडिय़ा और कांता चोरडिय़ा ने तपस्वीयों का सम्मान किया। पूना से आनन्द किरण पोषध ग्रुप और अनेक उपनगरीय स्थानों से भी श्रावक-श्राविकाएं कार्यक्रम में उपस्थित रहे। शुक्रवार २१ सितम्बर को कपल शिविर और अर्हम गर्भ संस्कार शिविर का आयोजन किया जाएगा।