चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में आचार्य जयमल जयंती पर आयोजित पंचदिवसीय कार्यक्रम के दूसरे दिन महिलाओं के लिए भिक्षुदया कार्यक्रम और आचार्य जयमल की दीक्षा विषय पर आनंदी छाजेड़ द्वारा नाटिका का मंचन किया गया।
इस मौके पर साध्वी कंचनकंवर व साध्वी डॉ.सुप्रभा के सानिध्य में साध्वी डॉ. उदितप्रभा ने कहा हमारा जीवन ऐसा है कि कब मृत्यु आ जाए, जीवन बुझ जाए पता नहीं। ज्ञानी कहते हैं कि युद्धभूमि को थर्र-थर्र कंपाने वाला सेनापति भी मौत के सामने हारता है। स्वयं को अमर मानकर पदार्थों पर आसक्त बने हैं कि छोडऩे का मन ही नहीं करते।
आज महिला वर्ग भिक्षु दया के लिए तत्पर बने हैं, लगता है हमारे बीस से बाइसवें तीर्थंकर प्रभु के समय की भिक्षुणियां उपस्थित है यहां पर। जिस हृदय में दया नहीं वह सूखी रेत के समान है। सम्यकत्व का लक्षण अनुकम्पा, करुणा भावना है जिसमें दया, करूणा, अनुकम्पा नहीं वह हृदय सम्यकत्व नहीं, वह मानव नहीं दानव है।
मनुष्य जन्म में कई कलाएं सीख ली पर दया नहीं तो सभी आचार, क्रियाएं, जाति-पंथ व्यर्थ है। दयारूपी नदी किनारे पर ही सभी धर्मरूपी वृक्ष और सद्गुण फलते-फूलते हैं। आगमों में कहा है श्रावक का हृदय दयावान होना चाहिए। सोने से पहले चिंतन करें कि आज क्या अच्छा कार्य किया, किसी का दुख दूर किया।
अस्त होता सूर्य आपके स्वर्णिम समय का एक हिस्सा लेकर जा रहा है उसका आपको रंज नहीं होगा। अपने दिवस को अच्छे कर्मों में बिताएं। दिल में दया हो तो धरती पर ही स्वर्ग बन जाएगा।
साध्वी डॉ. इमितप्रभा ने कहा अनन्त उपकारी आराध्य देव ने तिनाणं, तारियाणं का बोध सूत्र देते हुए भवि जीवों को संदेश दिया कि हे जीव तू इस संसार सागर से पार हो जा। जिनवाणी के माध्यम से अनेक बोध सूत्र उपस्थित होते हैं। तीन शब्द हैं हमारे सामने आसक्ति तन से, विरक्ति मन से और मुक्ति आत्मा से।
दूसरा विरक्ति- मन से यदि सोच लें कि मेरे साथ कुछ भी नहीं जाने वाला है तो अपने आप संसार से विरक्ति हो जाएगी। संयम के भाव पुण्यवानी से आते हैं लेकिन उसमें दृढ़ता रहना, आज्ञा मिलना, दीक्षा लेना और दीक्षा पालना और अंतिम सांस तक अपने संयम मार्ग पर दृढ़ रहकर पालन करना है। शुक्रवार को आचार्य जयमल की गुणानुवाद सभा होगी।