चेन्नई. कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मुथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा कि शीतल वातावरण में जो सफर नहीं करता तेज में धूप में चलने में उसे परेशानी ही परेशानी है। इसी तरह यौवनकाल में ,पुण्योदय काल में, अनुकूल समय में जो पुरुषार्थ नहीं करता सत्कार्य, सेवा कार्य , धर्मकार्य नहीं करता ,उसे प्रतिकूल समय में रोने के अलावा कोई मार्ग नहीं होता।
दीपावली का समय है परमात्म अराधना का अनुकूल समय है । यदि इस समय जो धर्म साधना मंत्र उपसना नहीं करता उसे दरिद्रता का अभाव , कष्ट उठाना ही पड़ता है। समय अनुकूल है ,ग्रह नक्षत्र अनुकूल है। महावीर ने साधना के माध्यम से परम प्रकाश पाया। निर्वाण पाया , आत्मा को जागृत किया। आप भी अंतस का दीया जलाकर प्रकाश को जन्म दे सकते हो। अंधकार से प्रकाश की ओर आ सकते है। साल भर तुमने जिस दिवाली का इंतजार किया अब सम्यक पुरुषार्थ कर उसका लाभ उठाओ।
नहीं तो दुख झेलना पड़ेगा। सब जानते है कि जीवन में भौतिक उपयोग के बिना ना सज्जन का काम चलता है न दुर्जन का। राजा का काम चलता है न रंक का। जो वस्तुओं की आसक् ित में जीता है वो अपना जीवन नर्क कर लेता है। जो वस्तुओं का , समय का सदुपयोग कर लेता है वो अपना जीवन सफल बनाता है। आंख कितनी भी छोटी क्यों नहो फिर भी वह विराट आकाश को अपने में समेट लेती है।
इसी प्रकार परमात्मा के लिए जाग्रत श्रद्धा विराट को स्वयं से जन्म देती है। गलत आत्मा, गलत विचार आंख में गिरे धूल के कण के समान आंख को धुुंधला कर देती है। यदि तुम्हारा हृदय परमात्मा की आस्था से पूर्ण है तभी महावीर की तरह तुम्हारी श्रद्धा जाग्रत हो सकेगी। दीयों का त्यौहार मात्र प्रकाश तक सीमित नहीं है। अंतस प्रकाश जगाने की प्रेरणा लेकर आया है।
यदि धन का दुरुपयोग किया तो जीवन पटाखो के समान क्षणिक आवाज कर समाप्त हो जाएगा। दीया बाती, तेल , जनम मरण , जीवन से तुम सीखो। महावीर को काली चतुर्दशी निर्वाण देकर गई थी। तुम्हारा भौतिक प्रकाश तुम्हे बरबाद कर देगा।