News 21.8.20 Hyderabad
A
ashok jirawala
to me, Chennai
5 minutes agoDetails
🌸 दीक्षा लेना आत्म कल्याण की बात : आचार्य महाश्रमण🌸
🌸 ध्यान दिवस के रूप में मनाया गया पर्युषण पर्व का सातवां दिन 🌸
🌸 पूज्य प्रवर ने किया संवत्सरी पर पौषध के लिए प्रेरित🌸तीर्थंकर के प्रतिनिधि, तेरापंथ धर्मसंघ की यशस्वी आचार्य परंपरा के उज्ज्वल नक्षत्र, परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने परम आराध्य भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा के प्रसंग में आगे बताया की उनके दाम्पत्य जीवन का प्रारंभ हुआ व प्रियदर्शना नामक पुत्री की प्राप्ति हुई।
उनके माता-पिता भगवान पार्श्व की परम्परा के श्रावक थे। बढती उम्र के साथ उन्होंने अपनी संलेखना का प्रारंभ कर, समाधि मरण प्राप्त कर लिया। हम मृत्यु सन्निकट आये उससे पहले विचार करें कि मैं कैसे मरूं क्योंकि मरना भी एक कला है और यह सबको आनी चाहिए। महावीर 28 वर्ष के हो गए। वे जब गर्भ अवस्था में थे तो एक बार यह सोचकर, कि मेरे इस हलन-चलन से माँ को कष्ट हो रहा है, उन्होंने अपना प्रकम्पन बंद कर दिया |
लेकिन माँ को लगा कि यह क्या हो गया ? वह दुखी हो गई, सारा उत्सव का वातावरण शोकमय बन गया | जब महावीर को ज्ञान से यह ज्ञात हुआ तो पुनः हलन-चलन प्रारंभ कर दिया व प्रतिज्ञा कर ली कि माता-पिता के रहते दीक्षित होकर उन्हें कष्ट नहीं देंगे। व्यक्ति को माता पिता की आज्ञा कि अवहेलना नहीं करनी चाहिए व माता पिता को धार्मिक लाभ मिले ऐसा कार्य करना चाहिए।
जब माता पिता का देहावसान हो गया तब उन्होंने अपने चाचा, बड़े भाई व बहन के सामने दीक्षा लेने की बात रखी और कहा कि अब में संसार छोड़कर साधु बनना चाहता हूं। नंदिवर्धन ने कहा अभी दो साल राजकीय शौक है उसके बाद दीक्षा ले लेना। वर्धमान ने बड़े भाई की बात मान ली और कहा कि में दो साल का यह जीवन साधना में ही बिताऊंगा।
दो साल बाद राजकीय शोक समाप्त होने पर तीस साल की उम्र में जब उन्होंने दीक्षा का मन बनाया तो वर्षीदान दिया गया। देव देवियाँ आये व देव निर्मित चन्द्रिमा की शिविका में बैठकर क्षत्रिय कुण्डपुर में उन्होंने पूर्वाभिमुख होकर अपने हाथों से अपना केश लुंचन कर मिगसर कृष्णा दशमी के दिन दीक्षा स्वीकार कर ली।
केश लुंचन की परम्परा का विशेष महत्व है, हमारे यहां बाल मुनि बैठे है, इनका अभी कुछ दिन पहले ही लाेच हुआ है, यह एक शूरवीरता का कार्य है। यह एक तपस्या की साधना है। भगवान महावीर समस्त पाप कर्मों का परिहार कर, सामायिक चारित्र स्वीकार कर, बेले की तपस्या में साधु बन गए। आप लोग गृहस्थ है आपके मन में भी भावना आए कि हम दीक्षा लेवे व आपके परिवार में भी कोई दीक्षा लेवे तो बहुत बढ़िया बात है। दीक्षा लेना आत्म कल्याण की बात है।
भगवान ने अभिग्रह भी किया कि साधना काल में शरीर की सार संभाल न करते हुए उपसर्गों को अव्यथित रूप से स्वीकार कर सहन करूंगा। वहां से विहार कर वे वामन छपरा पहुंचे व उनकी उपसर्गों की यात्रा का प्रारम्भ वहीं से शुरू हो गया।