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दीक्षा के लिए उम्र नहीं, उच्च भाव होने चाहिए : मुनि श्री रमेशकुमार

दीक्षा के लिए उम्र नहीं, उच्च भाव होने चाहिए : मुनि श्री रमेशकुमार

दीक्षार्थी मुमुक्षु कुणाल  और मुमुक्षु खुश का मंगलभावना समारोह

आचार्य श्री महाश्रमणजी के विद्वान शिष्य मुनि श्री रमेशकुमारजी के सान्निध्य में रविवार सुबह खुश बाबेल और कुणाल सावनसुखा का मंगल भावना समारोह रखा गया। चेन्नई के इन दोनों मुमुक्षु भाइयों की दीक्षा आगामी 20 अक्टूबर 2019 को बेंगलुरु में आचार्य श्री महाश्रमणजी के कर कमलों द्वारा दी जाएगी।

  इस अवसर पर सभा भवन में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए मुनि श्री रमेशकुमार ने फरमाया कि अक्सर बालकों से पूछा जाता है कि आप बालपन में क्यों दीक्षा लेते हो? अभी तक आपने दुनिया देखी कहां है? तो मुनि श्री ने श्रद्धालुओं से पुछा कि आप लोग तो बचपन से पचपन के हो गए हो, दुनिया पूरी देख ली है। क्या आप तैयार हैं, दीक्षा के लिए? नहीं, तो ध्यान दें, दीक्षा के लिए उम्र नहीं, उच्च भाव होने चाहिए। जिसमे जब भाव जागृत हो जाए, तब दीक्षित हो जाए और भव सागर रूपी नैया से पार हो जाए।

मुनि श्री ने आगे फरमाया कि दीक्षा होने के तीन कारण हो सकते हैं – एक दुख से त्रस्त होकर, दूसरा सुख की अति होने से और तीसरा ज्ञान की वृद्धि होने से। इन सभी में उत्तम है जो वैराग्य उत्पन्न हो ज्ञान की वृद्धि से। इसके लिए हर उम्र सही होती है। यह जब घटित होना होता है तब घटित होता है उस समय अगर सुगुरु से दीक्षा प्राप्त करके उनके निश्राय में संयम पथ पर आगे बढ़े तो यकीनन महावीर की वाणी को अपने जीवन में चरितार्थ कर सकते हैं।

   मुनि श्री सुबोधकुमार ने कहा कि अबोध कहते हैं बालकों को। लेकिन इन बालकों का सुबोध देखिए कि आज ये सही पथ को चुन करके उस पर अग्रसर होने के लिए तैयार हो गए। दीक्षा को समझाने के कई मायने हो सकते हैं, उनमें से एक है :- गुरु की कृपा और चेले की श्रद्धा। जिस दिन यह सद जाए, सही मायने में हो गई दीक्षा।

  मुमुक्षु खुश बाबेल और कुणाल सावनसूखा ने अपने जीवन में मिली अनेक व्यक्तियों की प्रेरणा ने उन्हें इस पथ पर आगे बढ़ने को प्रेरित किया। उनमें से प्रमुख हैं गुरुदेव महाश्रमणजी, मुख्य मुनिश्री और अपने परिजन। इन सभी की प्रेरणा से उनका वैराग्य पुष्ट होकर के इस नतीजे पर आया है कि गुरुदेव ने भी उन्हें अपने कर कमलों से दीक्षा की स्वीकृति प्रदान की हैं। मुमुक्षु भाइयों ने श्रद्धालुओं को भी संयम की ओर अग्रसर होने की सलाह दी।

  तेरापंथ थली परिषद की लेडीज विंग और ट्रिप्लीकेन की महिलाओं ने मधुर कंठ से मंगलाचरण किया।    ट्रिप्लिकेन ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री गौतमचन्द सेठिया ने अपने अध्यक्षीय स्वर में कहा संसारी और साधु, यह दो प्रणालियां है जीवन को सही ढंग से जीने के लिए। बहुलता संसारी व्यक्तियों की है और न्यूनता है संतों की। 

संसारी के कषाय बढ़ता है और संत कषाय को क्षीण करते रहते हैं। हमें भी प्रेरणा लेनी चाहिए किस प्रकार से हम सुपथ पर चलते हुए अपने कषायों को क्षीण करें।

  तेरापंथ थली परिषद् के अध्यक्ष श्री ललित राखेचा ने अपने स्वागत भाषण में कहा चारित्र आत्माएं जो ऋजु होती हैं, उनके  प्रयाण पर देव विमान भी उन्हें लेने आते हैं। ऐसी होती हैं महानता ऋजु संतों की।

दोनों मुमुक्षु के प्रति मंगल भावना करते हुए उन्हें इस पद पर आगे बढ़ते हुए अपनी आत्मा का और पर का कल्याण करने की मंगल भावना प्रेषित की।

   गीतों प्रस्तुति की श्रृंखला में श्री मदन मरलेचा, श्री धनराज मालु, श्रीमती विजया देवी सेठिया एवं ज्ञानशाला प्रशिक्षक गणों ने अपनी प्रस्तुति दी। मुनि श्री द्वारा रचित गीतिका को 13 महिलाओं ने अपनी मनमोहक प्रस्तुति दी। 

तेरापंथ सभा के अध्यक्ष श्रीमान् विमल चिप्पड़, तेरापंथ युवक परिषद् के अध्यक्ष श्री प्रवीण सुराणा, तेरापंथ महिला मंडल की अध्यक्षा श्रीमती शांति दूधोड़िया और माणक बोहरा ने मुमुक्ष के प्रति मंगल भावना व्यक्त की।

मुमुक्षु भाइयों का परिचय भाई श्री मनोज डूंगरवाल और सुश्री याचिका खटेड़ ने दिया। मुमुक्षु को माल्यार्पण, शाल्यार्पण एवं स्मृति चिन्ह देकर सभा के वरिष्ठ सदस्यों ने सम्मानित एवं अभिनंदन किया।

  धन्यवाद ज्ञापन तेरापंथ थली परिषद के मंत्री श्री संदीप भंडारी और संचालन श्री राकेश खटेड़ ने किया। मुनि श्री के मंगल पाठ से कार्यक्रम संपन्न हुआ।

        प्रचार प्रसार प्रभारी
श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा, चेन्नई

स्वरूप  चन्द  दाँती
विभागाध्यक्ष  :  प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति

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