माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में ठाणं सूत्र के छठे स्थान के सेंतालीसवें सूत्र में छह प्रकार की लेश्याओं का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि छदमस्थ अवस्था में प्रमाद हो सकता हैं| हमें इस बात पर ध्यान देना है कि हम शुभ लेश्या, उसमें भी शुक्ल लेश्या में रहें| शुक्ल लेश्या उज्जवलता की लेश्या हैं| हमारी प्राणधारा शुद्ध हो, न चोरी, न हिंसा, हर पल शुभ परिणाम में रहे| यह आत्मा, यह जीव अनेक चित्तों वाला व भाव धारा होता हैं| विशुद्ध भाव धारा भी और अशुद्ध भाव धारा भी| शुभ लेश्या, शुभ योग, शुभ भावधारा रहे, तो चित्त निर्मल बनता हैं|
दिशा बदले तो दशा बदले
आचार्य श्री महाश्रमण ने आगे कहा कि प्रेक्षाध्यान का मूल लक्ष्य है – चित्त शुद्धि, चित्त शुद्ध रहे| गौण या प्रासंगिक लक्ष्य देखे तो शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य मिल सकता हैं, पर मूल चित्त निर्मल रहे| चित्त धारा जितनी बदलेगी, शांति मिलेगी, आराम मिलेगा| जीव जिस लेश्या में मरता है, उसी लेश्या में वह आगे पैदा होता हैं| हमारे पूरे जीवन काल में लेश्या अच्छी रहे, मृत्यु का क्या भरोसा? हम राग-द्वेष के भाव से जितना हो सके, बचें| राग द्वेष कर्म के बीज है| पाप का बंध इससे होता हैं| मोहनीय कर्म, पाप कर्मों के बंध कराने के लिए जिम्मेदार होता हैं| हमारी मोहनीय कर्म की प्रवृत्ति हल्की हो, राग द्वेष पतला हो| राजर्षि प्रसन्नचन्द की घटना का विवेचन करते हुए आचार्य श्री ने आगे कि दिशा बदले तो दशा बदले| भावधारा, लेश्या मल्लीन होने से अधोगति और निर्मलता से उर्ध्वगति हो सकती हैं|
श्रावक और साधु – रत्नों की माला
आचार्य श्री ने आगे कहा कि हम शरीर, वाणी से क्या करते हैं, इससे ज्यादा महत्व है, भावधारा कैसी हैं| उपर से अच्छा, पर भावधारा मल्लीन तो नरक और अच्छी हो तो परम् पद| मरूदेवा माता का उदाहरण देते हुए कहा कि निश्चय नय में भावधारा प्रमाण है| भावधारा जैसी हैं, परिणाम जैसे है, उस हिसाब से आत्मा का पता हो सकता हैं| साधु ने निर्मल भावधारा का मार्ग लिया है, श्रावक भी वही मार्ग लेने का प्रयास करें| श्रावक नीचे की सीढ़ी में और साधु उपर की सीढ़ी में| दोनों रत्नों की माला है – एक छोटी, एक बड़ी| एक अणुव्रती, एक महाव्रती| साधु, श्रावक के लिए ही नहीं, अपितु देवताओं के लिए भी पूजनीय होता हैं| हम शुभ लेश्या में रहें, भावधारा निर्मल हो, परिणाम शुद्धि, कार्य शुद्धि का प्रयास करें, यह अभिदर्शनीय हैं|
17वॉ अन्तर्राष्ट्रीय प्रेक्षाध्यान शिविर
अष्टदिवसीय 17वें प्रेक्षा इन्टरनैशनल शिविर जिसमें रूस, स्वीडन, यूक्रेन, सिंगापुर, फांस इत्यादि विदेश से 73 साधक, संभागी बने हुए हैं, उनको विशेष पाथेय प्रदान करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि प्रेक्षाध्यान, ध्यान जगत में उपलब्धि देने वाला है| कितने-कितने विदेशी जुड़े हैं| विदेशी हो या देशी, मूलत: प्रेक्षाध्यान आत्मशुद्धि का काम हैं| शिविर के शिविरार्थी अपने-अपने क्षेत्र में प्रेक्षाध्यान का प्रचार प्रसार करते रहें| अपनी स्वयं की साधना करें, उनकी आत्मा उन्नत बने|
रूस पधारने की, कि विनती
शिविरार्थी ओल्गा चेलवी कोल्वा समूह (Olga Chellvi Kolva Group) ने प्रेक्षा गीत का सामूहिक संगान किया| समूह के सदस्यों ने आचार्य श्री महाश्रमणजी से रूस पधारने की, विनती की| उन्होंने ने रशिया में संचालित प्रेक्षाध्यान की गतिविधियां निवेदित करते हुए कहा कि रशिया और आस पास के क्षेत्रों के लगभग 4000 व्यक्ति प्रेक्षाध्यान की साधना से लाभान्वित हो चुके हैं| ऐलेना आचा गोवा (Elena Acha Gova) जो युक्रेन में प्रेक्षा ध्यान शिविर चला रही हैं| उसने कहा मैं मेडिकल सेन्टर भी चला रही हूँ| स्कूलों में पढ़ने वाले छोटे – छोटे बच्चे, जो साइक्लोलिकल रूप से बिमार है, जिनका डॉक्टर के इलाज से 3 – 4 महिना लगता है, वही वह प्रेक्षाध्यान के द्वारा इलाज करके 1 महिने में ही बच्चे ठीक हो जाते हैं| एलेका पैरायर (Eleca Pahear) ने भी अपने भावों की अभिव्यक्ति दी|
साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभा ने कालू यशोविलास का विवेचन करते हुए कहा कि वर्धमान महोत्सव पर आचार्यों की रीझ और खीझ दोनों देखने का मौका मिलता हैं| मुनि श्री स्वास्तिक कुमारजी द्वारा लिखित पुस्तक स्वर मंजरी का प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री धरमचन्द लूंकड़ ने विमोचन किया| असम उच्च न्यायलय के अधिवक्ता श्री विजय महाजन ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि कई साधु, गुरू के पास घर होता हैं, पैसा होता हैं, पर आचार्य श्री महाश्रमणजी इन सबसे निर्लिप्त है| भाजपा के पूर्व सांसद इला गणेशन ने भी अपने भावों की अभिव्यक्ति दी| दोनों का प्रवास व्यवस्था समिति द्वारा सम्मान किया गया| प्रवास व्यवस्था समिति के उपाध्यक्ष श्री इन्द्रचन्द डुंगरवाल, सहयोगी मानमल मुथा, माणकचन्द डोसी एवं प्रत्युस श्रीश्रीमाल ने अपने विचार रखें| तेयुप अध्यक्ष श्री भरत मरलेचा ने आज से प्रारम्भ जैन विद्या परीक्षा की जानकारी दी| कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार ने करते हुए कहा कि गुरु दृष्टि में ही सुख की सृष्टि होती हैं|
✍ प्रचार प्रसार विभाग
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई
विभागाध्यक्ष : प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति