कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत धारा बरस रही है, जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि नें धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने गौतम स्वामी के पूछने पर उनको कहा कि हे गौतम ये सुबाहु कुमार ने सुमुख गाथा पति के भव में सुदत अणगार को सुपात्र दान देकर के संसार परित कर पाप कर्म का खाता बंद ( क्लोज) कर दिया है।
पुण्य का भंडार भर लिया है जिससे हर जन्म में सुख ही सुख प्राप्त करते हुए अपने घाती कर्मों को काट कर केवल ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष पद को प्राप्त करेंगे। सुमुख गाथा पति ने जैसे ही मुनि को आहार दान दिया वैसे ही पंच दिव्य प्रकट हो गये।
साढे बारह क्रोड स्वर्ण मुद्राएं व कपड़ों के थान और अचित पुष्प अचित पानी की बरसात तथा अहो दानं – अहो दानं की देवता गण घोषणा करने लगे। देव दुन्दुभी की आवाज सुनकर जनता सुमुख गाथापति के घर की और आने लगे और गाथा पति के दर्शन कर कहने लगे।
धन्य हैं तुम्हें जो तपस्वी संत को आहार दान दे करके तुमने अपने जीवन को व देने योग्य वस्तु को सफल कर लिया बहुत – बहुत धन्यवाद है। सुपात्र दान देने की चर्चा हर गली बाजार दो रास्ते तीन रास्ते चार रास्ते पांच रास्ते जिसे ( पंच कुइयाँ ) कहते हैं। हर स्थान व घर घर एक ही चर्चा थी कि सुमुख गाथापति ने अपने हाथों से सुपात्र दान देकर के जीवन को सार्थक कर लिया है बार-बार अनुमोदना कर रहे हैं अनुमोदना से भी कर्मों की निर्जरा होती है।