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ज्ञान वाणी

दान के पीछे अहंकार पुष्टि व्यापार है: कपिल मुनि

दान के पीछे अहंकार पुष्टि व्यापार है: कपिल मुनि

चेन्नई. जिस दान के पीछे नाम की भूख और अहंकार पुष्टि की भावना होती है वह दान नहीं अपितु सौदा और व्यापार होता है। व्यक्ति की सम्पन्नता तभी सार्थक है जब उसका एकत्रित धन किसी की उन्नति का आधार बने। जब दान बगैर शोर किये निस्वार्थ भाव से किया जाता है तभी पाप कर्म के क्षय और पुण्य कर्म में वृद्धि का निमित्त बनता है। दान और सेवा सही मायने में धर्म के दो प्रमुख स्तम्भ हैं जिनके बिना जीवन अधूरा और मूल्यहीन है। अत: जब तक जीवन में सांस चलती रहे तब तक तन मन धन से पुण्य उपार्जन और धर्माचरण में कभी पीछे नहीं हटना चाहिए।

गोपालपुरम स्थित भगवान महावीर वाटिका में विराजित कपिल मुनि ने कहा भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित नव तत्व में पुण्य ही ऐसा तत्व है जो जीवन उपयोगी साधन और भौतिक उपकरण की प्राप्ति में सहायक होता है। पुण्यार्जन के ये नौ राजमार्ग है जिन पर चलकर कोई भी भी व्यक्ति अपने वर्तमान और भविष्य को उज्ज्वल बना सकता है। दया करुणा की भावना से दिया हुआ दान ही श्रेष्ठतम होता है।

जो लोग जिन्दगी भर भ्रष्ट तरीके से अन्याय अनीति से कमा कर दानवीर होने का प्रदर्शन करते हैं और फोटो छपवाते हैं वे दान नहीं अपितु अपने अहंकार का पोषण करके दुर्गति का इंतजाम कर रहे हैं। दान से प्रबल पुण्य का बंध होता है बशर्ते उसमें समर्पण और अनुकंपा की भावना हो। हमें अपनी गिरेबां में झांकना चाहिए कि अपने जीवन में मर्यादा की प्रतिष्ठा है या असंयम की। जिस जीवन में संयम, मर्यादा और धर्म की प्रतिष्ठा नहीं वही जीवन दुर्गति और कर्मों की मार झेलने का कारण बनता है।

हमें यह भूलने की मूर्खता हरगिज नहीं करनी चाहिए संयम और मर्यादा ही जीवन की अनमोल धरोहर है। वर्तमान दौर में अशांति अराजकता, तनाव आक्रोश, स्वार्थ और लालच इसीलिए पनप रहा है कि व्यक्ति के जीवन में नैतिक मूल्य और संयम का दिन ब दिन ह्रास हो रहा है । जीवन में नैतिक मूल्यों का पतन होने से हैवानियत परवान चढ़ रही है । मर्यादा ही धर्म का मूल स्वरूप है इसके बिना धर्म-कर्म और क्रिया का कोई मूल्य महत्त्व नहीं है।

संघ मंत्री राजकुमार कोठारी ने बताया कि विजया दशमी से मुनि के सानिध्य में 21 दिवसीय श्रुतज्ञान गंगा महोत्सव के तहत भगवान महावीर की अंतिम देशना श्री उत्तराध्ययन सूत्र का वांचन और विवेचन होगा। इस मौके पर अमरचंद छाजेड़, अशोकचंद रांका, पन्नालाल बैद, जवाहरलाल नाहर, ज्ञानचंद मुणोत, महावीरचंद कटारिया, किशोर रांका आदि गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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