साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा दान, शील, तप और भावना के मार्गो से ही मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इन चार पायों में सबसे पहले दान आता है जिसे करके मनुष्य अपनी जीवन की मंजिल तय कर सकता है।
पहले तो दान के संदर्भ में लोगों को कुछ भी पता नहीं था लेकिन धर्म करने से जीवन एकदम सरल बन जाता है। धर्म की वजह से ही युगलिक लोग देवलोक के अधिकारी होते है। अपने इन कर्मो से ही युगलिग हमेशा देवगति को ही प्राप्त करते है।
जिस मनुष्य के जीवन में सरलता होती है उसी को उच्च गति मिलती है। खुद को उच्च गति पर पहुंचाने के लिए जीवन में सरलता लाना चाहिए। दान की महिमा बहुत ही महान होती है। वर्तमान में अगर किसी व्यक्ति को वैभव मिल रहा है तो यह उसके पूर्व में किए हुए दान के कारण है। ऊंची गतियों में जाने का दान ही प्रथम सोपान होता है। जीवन मिला है तो दान कर अपने जीवन को सफल बना लेना चाहिए।
जीवन को धर्म से जोडऩे के लिए सबसे पहले मनुष्य को दान से जुडऩा चाहिए। जिस प्रकार से नदी, वृक्ष, सूर्य और प्रकृति मनुष्य को उसके जरुरत की चीज देती है उसी प्रकार से अगर मनुष्य के पास कुछ है तो उसे दान देना ही चाहिए। इस तरह के उत्तम दान के भाव रखने वाले भाग्यशाली लोग अपने जीवन को मोक्ष की मार्ग पर पहुंचा देते हैं।
दान के पीछे उत्तम भावना रख कर ही दान करना चाहिए, दिखावा में दान करने से कोई लाभ नहीं मिलेगा। सागरमुनि ने कहा मनुष्य को चारित्र और तप इसी भव में मिलेगा, इसका पूरा लाभ उठाना चाहिए। ज्ञान की आराधना के साथ चारित्र की आराधना भी करनी चाहिए। यह जीवन एक बार गया तो वापस लौट कर नहीं आएगा।
मनुष्य की आत्मा ही उसके सुख दुख का कारण है। इस मौके पर संघ के अध्यक्ष आनंमल छल्लाणी एवं अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे।