साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा जग में आकर दान करने वालों का जन्मों तक यशगान होता है। दान करने से ही मनुष्य का कर्म महान बनता है। दान ही धन की शोभा बढ़ाता है। तीनों लोक में दानी का ही गुणगान होता है।
ऐसा कर व्यक्ति अपने जीवन में आनंद का अनुभव कर सकता है। जब आत्मा संसार को छोडक़र चारित्र को स्वीकार करती है तो जीवन की रक्षा होती है। जिन शासन से सारा संसार जगमगाता है। इसमें कई महान आत्माएं हुई जो अपने साथ दूसरों के लिए भी उपकार और भलाई का कार्य किया। साधु वही होते है जो खुद के साथ दूसरों के धर्म कार्य में सहयोगी बनते हैं।
ऐसे साधु ही जन जन के जीवन का कल्याण करते हैं। मनुष्य दान, शील, तप और भावना के मार्ग पर चल कर अपने साथ दूसरों के जीवन का भी उत्थान कर सकता है। उनके इस त्याग से उनका जीवन चमक जाएगा। उन्होंने कहा धर्म के प्रति जिनके हृदय में श्रद्धा और आस्था होती है वहीं वास्तव में ज्ञानी और समझदार होते है।
कई बार ज्ञान मिलने पर मनुष्य फूल जाता है और तकलीफ आने पर घबरा जाता है जबकि विपत्ति के समय में धर्म को अपने जीवन में बनाए रखने वाले ही सफल बन पाते हैं। हर समय धर्म में श्रद्धा रखनी चाहिए। इस तरह के उत्तम भाव रखने वाले भाग्यशाली लोग जीवन को सफल बना लेते हैं। मुनि ने कहा मनुष्य को चारित्र और तप इसी भव में मिलेगा, इसका पूरा लाभ उठाना चाहिए।
ज्ञान की आराधना के साथ चारित्र की आराधना भी करनी चाहिए क्योंकि मनुष्य भव में ही चारित्राराधना करना संभव है। यह जीवन एक बार गया तो वापस लौट कर नहीं आएगा। मनुष्य की आत्मा ही उसके सुख दुख का कारण है। इस मौके पर संघ के अध्यक्ष आनंदमल छल्लाणी, कोषाध्यक्ष गौतमचंद दुगड़ व अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित थे।