चेन्नई. जो रावण के वंशज होते हैं वे रात्रि में जबकि राम और महावीर के वंशज दिन में ही भोजन करते हैं। एक तरफ लोग नवरात्रि की बात करते हैं और दूसरी ओर अपने खाने पीने पर नियंत्रण नहीं करते। दर्शन यात्रा में जाने वाले लोग भी रात्रि में खाते पीते जाते हैं जबकि ऐसा कभी नहीं करना चाहिए।
साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा कि नवरात्रि का पवन पावन दिवस सुुंदर भावनाओं को लेकर सामने आया है। नवरात्रि में मनुष्य को सात्विक खाना, सात्विक पीना और सात्विक ही सभी कार्य करना चाहिए। नवरात्रि मनुष्य को सुखी बनाने का मार्ग दिखाने के लिए आते हं। इस मौके का लाभ उठा कर प्रत्येक मनुष्य अपनी आत्मा और जीवन को परम पावन बना सकता है। नवरात्री के समय में मनुष्य का जीवन पूरी तरह से सात्विक ही होना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर जीवन में सात्विकता आएगी तो जीवन का सार पता चलेगा।
उन्होंने कहा कि अपने परिवार का पेट तो सभी भरते हैं, लेकिन घर पर आने वाले गरीब का भी पेट भरने से पीछे नहीं हटना चाहिए। दीन दुखियों को कभी भी दुखी नहीं करना चाहिए। अगर घर पर कोई आ जाए तो उसे भर पेट भोजन कराना ही चाहिए। ऐसा करके मनुष्य अपने जीवन का उद्धार कर सकता है।
सागरमुनि ने कहा अंधकार में भटकने वाला जब तक कोशिश नहीं करेगा उसे प्रकाश के बारे में पता नहीं चलेगा। प्रकाश के महत्व को जानने के लिए अंधकार से निकलना जरुरी होता है। उसके लिए गुरु दर्शन के लिए आगे आना होगा, क्योंकि गुरु दर्शन से ही सुदर्शन की प्राप्ति होती है। जो मनुष्य श्रमण करता है उसे ज्ञान की प्राप्ति होती है। मनुष्य के आत्मा में ही प्रकाश और अंधकार होता है। लेकिन अज्ञानता की वजह से वे ईधर उधर भटकता रहता है। एक बार ज्ञान आ जाने पर सब कुछ समझ आ जाता है। विनयमुनि ने मंगलपाठ सुनाया। धर्मसभा में अध्यक्ष आनंदमल छल्लाणी एवं अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे। संचालन मंत्री मंगलचंद खारीवाल ने किया।