साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने पर्यूषण पर्व के दूसरे दिन कहा पर्यूषण आने से घर घर में आनंद छाता है। पर्व और त्योहार हमारे समाज के अंदर हमेशा से चलते आए हैं। त्योहार मनुष्य की इन्द्रियों, मन और शरीर को पुष्ट करते हैं जबकि पर्व मनुष्य के आत्मगुणों को। इससे आत्मा को बहुत बड़ा लाभ होता है। त्योहार पर लोग अच्छे कपड़ा पहनते हैं, लेकिन पर्व के दिनों में त्याग और तप करने की इच्छा होती है।
दिल को सद्गुणों से जोडऩे की इच्छा होती है। पर्यूषण पर्व पर लोगों को तप तपस्या कर अपना जीवन सफल बनाने की ओर आगे बढऩा चाहिए। इस आठ दिन में अपनी आत्मा की निर्जरा कर लेनी चाहिए। इसका वास्तविक लाभ तब मिलेगा जब अपने द्वारा कोई भी भूल हुई हो तो उससे क्षमा याचना करलें। छोटा हो या बढ़ा, गलती के लिए क्षमा मांग लेनी चाहिए।
पर्यूषण में मनुष्य अपने आत्महित के लिए जो भी करना चाहे कर सकता है। सागरमुनि ने कहा आचरण आत्मा को परमात्मा बना देता है लेकिन सबसे पहले प्रवचन श्रमण कर ज्ञान का प्रकाश प्राप्त करें। आचरण का महत्व तो बहुत होता है लेकिन तप के बाद ही उसका लाभ मिल पाता है। बिना तप आराधना के कोई भी आत्मा परमात्मा नहीं बन सकती।
उसके लिए सबसे पहले ज्ञान प्राप्त करने की जरूरत होती है। वर्तमान में मनुष्य ऊंचाई पर जाने का विचार तो करता है लेकिन याद रहे केवल विचार करने से कुछ भी हासिल नहीं होता। पर्यूषण यही संदेश लेकर आता है कि मनुष्य अपने प्रयासों से लोक के अंधेरे में उजाला करे।
यह मनुष्य को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। उसे अपने भीतरी अंधकार को पहचान कर प्रकाश की ओर बढऩा चाहिए। इससे पहले उपप्रवर्तक विनयमुनि ने अंतगढ़ सूत्रवाचन किया। धर्मसभा में संघ के अध्यक्ष आंनदमल छल्लाणी भी उपस्थित थे। मंत्री मंगलचंद खारीवाल ने संचालन किया।