मुमुक्षु तुषार चोरड़िया का किया स्वागत सत्कार, दीक्षा 6 दिसंबर को
उदयपुर। जो व्यक्ति वैराग्य का अर्थ उदासीनता, पलायन अथवा नीरस जीवन मानता है यह उसकी भयंकर भूल है अर्थात अज्ञान दशा है। उक्त विचार राष्ट्रसंत कमलमुनि ‘कमलेश’ ने बुधवार को यहां सुंदरवास जैन स्थानक भवन में दीक्षार्थी तुषार चौरड़िया के अभिनंदन समारोह को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि वैराग्य का मतलब विमुख होना नहीं बल्कि अपने और पराए, राग और द्वेष से ऊपर उठकर निष्काम और निष्पक्ष सत्य का अनुसंधान करना है। चिंतन करना ही सच्चा वैराग्य है। मुनि कमलेशजी ने कहा कि जिसकी आत्मा में वैराग्य भाव आ जाते हैं वह निर्भीक निडर और साहसी बन कर कफन का टुकड़ा भी सिर पर बांधकर जीने मरने की परवाह न करते हुए मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए मैदान में उतरता है।
राष्ट्रसंतश्री ने स्पष्ट कहा कि यदि महापुरुष वैराग्य धारण करके एकांत जंगलों में चले जाते और हमारे बीच ना आते तो क्या हम जैसे संतों का निर्माण होता, मानव को सन्मार्ग मिलता क्या? जैन संत ने यह भी कहा कि जो निंदा में दुखी प्रशंसा में फूलता नहीं मान और अपमान का परिणाम उसमें आत्मा को छूता नहीं हर पल आनंद में रमण करता है वह संसारी होकर भी संत है।
उन्होंने कहा कि वैराग्य का संबंध वेश पंथ और परंपरा से नहीं, बल्कि विचारों से अंतर्मन से वस्तुओं के प्रति आसक्ति का त्याग करना वैराग्य है। त्याग, सादगी और साधना वैराग्य का लक्षण है इसके बिना स्थाई शांति और आत्म कल्याण नहीं हो सकता। इस दौरान महासती सुप्रभाजी, महासती पारसकंवरजी ने दीक्षार्थी तुषार को मंगल आशीर्वाद दिया।
उल्लेखनीय है कि मुमुक्षु तुषार चोरड़िया की 6 दिसंबर को वल्लभनगर में संतश्री कमलमुनिजी के सानिध्य में दीक्षा होने जा रही है। विनोद पोखरना, धनराज धींग, दया लाल डांगी व अनिल कोठारी ने दीक्षार्थी का स्वागत-सत्कार किया।