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तेरापंथी महासभा का प्राणतत्व है धर्म : आचार्य श्री महाश्रमण

तेरापंथी महासभा का प्राणतत्व है धर्म : आचार्य श्री महाश्रमण

पद से मुक्ति के बाद भी संस्था से रहे युक्ति की दी विशेष प्रेरणा

तेरापंथी महासभा का 110वॉ स्थापना दिवस

ताल छापर :  जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के 110 वां स्थापना दिवस व महासभा शीर्ष सम्मेलन का आयोजन आचार्य श्री महाश्रमणजी के सान्निध्य में आयोजित हो रहा है।

महासभा के कार्यकर्ताओं के साथ धर्म परिषद् को सम्बोधित करते हुए आचार्य श्री महाश्रमणजी ने कहा कि संगठन का अपना महत्व होता है। कुछेक कार्य व्यक्तिगत स्तर पर होने मुश्किल हो सकते हैं, संगठन के स्तर पर उनका कुछ काम आसान हो सकता है, जहां बहुत से लोग होते हैं। बिखरे हुए मणिए जब माला के रूप में सामने आते हैं, तो उनकी उपयोगिता होती हैं। झाडू है तब तक वह कचरा साफ करने में काम आता है और जैसे ही वह बिखर जाता है, स्वयं कचरा बन जाता है। इसलिए संगठन का अपना महत्व होता है।

 जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा केंद्रीय संस्थाओं में सर्वाधिक प्राचीन संस्था है, जिसको आज 110 वर्ष हो गए हैं। तेरापंथी महासभा एक अच्छी सक्षम संस्था के रूप में हमारे सामने हैं। तेरापंथी समाज में संस्था शिरोमणि है। यह मात्र अलंकरण ही नहीं, अर्थपूर्ण अलंकरण है, दायित्व की चेतना की ओर संकेत करने वाला अलंकरण है, तथ्यात्मक भरा है। काल की दृष्टि से तेरापंथ धर्म संघ की यह पुरानी एवं प्रथम संघीय संस्था है। कालक्रम का भी एक महत्व होता है, काल एक पक्ष होता है, काल के साथ, कार्य का विशिष्ट महत्व होता है। जैन श्वेतांबर तेरापंथ समाज की और से कहीं प्रतिनिधित्व करना हो तो तेरापंथी महासभा के समकक्ष कोई नहीं है, प्रथम स्थान है।

गुरुदेव ने फरमाया कि कितने-कितने कार्यकर्ताओं ने इस संस्था के माध्यम से अपने श्रम, शक्ति, समय का नियोजन किया, सेवाएं दी और दे रहे हैं। समाज में ऐसी संस्था का होना भी समाज के लिए भी महत्वपूर्ण होता है। गणाधिपति पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी, आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने इस संस्था की संरचना, नियोजना, संगठनात्मक विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। तेरापंथी महासभा का अध्यक्ष बनना भी एक गौरव की बात है। श्रावक कार्यकर्ता और महिलाएं भी इसके साथ जुड़ी हुई हैं। महासभा अपने इतिहास के संवर्धन के लिए कार्य करती रहे, जहां आध्यात्मिक विकास का अवकाश रहेगा, वहां हमारा निर्देशन भी महासभा को मिलता रहेगा।

पद से मुक्ति के बाद भी, संस्था से रहे युक्ति

आचार्य श्री ने पूर्व पदाधिकारियों को विशेष पाथेय देते हुए कहा कि पद से मुक्ति के बाद भी, संस्था से युक्ति रहना बड़ी बात हैं। पद एक व्यवस्था है वह आता है और चला जाता है, लेकिन व्यक्ति सदैव संगठन से जुड़ा रहे। तेरापंथी महासभा में अन्य सामाजिक संस्थाओं की अपेक्षा धार्मिकता का सबसे बड़ा पक्ष है। तेरापंथी महासभा का प्राण है – वह धर्म है। सुरक्षा और विकास का काम जैसे मां का होता है, उसी तरह तेरापंथी महासभा भी समाज के विकास में यह कार्य करती हैं, समाज के श्रावकों की जागरणा में सहयोगी बनती हैं, प्राणवत्ता को मजबूत बनाती हैं।

महासभा के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि श्री विश्रुतकुमार, अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया, मंत्री श्री विनोद बैद, निवर्तमान अध्यक्ष सुरेश गोयल ने अपने विचार व्यक्त किये।

 समाचार सम्प्रेषक : स्वरूप चन्द दाँती

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