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तृष्णा ही दु:ख का मूल कारण: डॉ. वरुण मुनि

तृष्णा ही दु:ख का मूल कारण: डॉ. वरुण मुनि

आचार्य शुभचन्द्र म. की जन्म जयंति कल

चेन्नई. दो शब्द हैं – हमारे सामने एक है आवश्यकता और दूसरी है इच्छा। ये तो आप सभी जानते हैं कि- इच्छा और आवश्यकता में क्या अंतर होता है? इंसान की मूलभूत आवश्यकताएं हैं- रोटी, कपड़ा और मकान। महापुरुष बताते हैं- इच्छाएं तो सिकंदर जैसों की भी पूरी न हुई। हां, जीवन का सही ढंग से संचालन किया जाए तो आवश्यकताएं अवश्य ही पूरी हो जाती हैं। यह विचार ओजस्वी प्रवचनकार डॉ. वरुण मुनि ने जैन भवन, साहुकारपेट में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

उन्होंने कहा जैसे आप दूर आसमान देखते हैं तो लगता है- धरती-आकाश का मिलन हो रहा है परंतु उस स्थान की निशानी लेकर आप वहां पहुंचे तो भी आकाश उतना ही दूर रहता है। ऐसे ही इंसान को लगता है- मेरी यह इच्छा पूरी हो जाएगी तो मन शांत हो जाएगा परंतु एक इच्छा पूरी होते ही चार नई इच्छाएं जाग जाती हैं। फिर इंसान उन्हें पूरा करने की दौड़ में लग जाता है। जैसे-जैसे इंसान के पास पैसा बढ़ता जाता है, वैसे वैसे उसकी इच्छाएं भी बढ़ती जाती हैं और फिर वह दिन-रात बेचैन बना रहता है। संत पुरुष बताते हैं कि यह तृष्णा ही दु:ख का मूल कारण है।

गुरुदेव ने कहा यह तृष्णा की आग ऐसी है इसमें जितना ईंधन डालो उतनी ही बढ़ती जाती है। कुछ ऐसा ही इंसान की इच्छाओं का स्वभाव है। यह भी आगे से आगे सदा बढ़ती ही रहती हैं। शुरू में इंसान 2 जून की रोटी के लिए मेहनत करता है, फिर कपड़ा, फिर मकान फिर गाड़ी- बंगला उसके बाद बैंक बैलेंस आदि। उसकी तृष्णा का कभी अंत ही नहीं आता। यह इच्छा ही है जो इंसान को न दिन में चैन से जीने देती है, न रात को शांति से सोने देती है। इसीलिए प्रभु महावीर ने फरमाया-इच्छाएं आकाश के समान अनंत हैं। श्री संघ के अध्यक्ष संपतराज सिंघवी एवं चेयरमैन धर्मेश लोढ़ा ने बताया कि सोमवार को आचार्य शुभचन्द्र म.की जन्म जयंति सामायिक दिवस एवं गुणगान सभा के रूप में मनाई जाएगी। संघ के महामंत्री शांतिलाल जी ने बताया कि इस अवसर पर संत कृपा राम म. विशेष रूप से पधारेंगे।

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