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तृष्णा की भावना जैसे जैसे बढती जाती है वैसे वैसे उसके वशीभूत होकर कर्मों की निर्जरा कभी नही होती: प.पू. सुधा कवर जी म सा

तृष्णा की भावना जैसे जैसे बढती जाती है वैसे वैसे उसके वशीभूत होकर कर्मों की निर्जरा कभी नही होती: प.पू. सुधा कवर जी म सा

कोडमबाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ प्रांगण में आज शनिवार को प.पू. सुधा कवर जी म सा आदि ठाणा 5 की निश्रा में प्रखर वक्ता श्री विजय प्रभा जी मसा के मुखारविंद से:-ठाणांग सूत्र के चार कथा में क्रोध मान माया लोभ ऐसे कषाय है जो मित्रता एवं सद्गुणों का नाश कर देते हैं! ये सभी कषाय दुर्गति के मेहमान है! समुद्र एक ऐसा गड्ढा है जो कभी भरता ही नहीं! यध्यपि विश्व की सारी नदियां, सारी झीलों का समावेश इसी समुद्र में होता है! संसार भी एक ऐसा सा ही गड्ढा है जिसने बडे बुजुर्ग जवान बिमार जैसे अरबों को निगल लिया, फिर भी गड्ढा भरा नही! पेट एक ऐसा गड्ढा है जो सुबह दुपहर शाम रात को खाते हुये भी भरता ही नही!

तृष्णा की भावना जैसे जैसे बढती जाती है वैसे वैसे उसके वशीभूत होकर कर्मों की निर्जरा कभी नही होती! मम्मण सेठ के पास हीरे जवाहरात से जडे सोने के बैल होने के बावजूद रोज जंगल से सूखी लकड़ियों का संग्रह करके उडद के बाकले से पेट भरता था! एक दिन मूसलाधार वर्षा में मम्मण सेठ लकड़ियों का संग्रह करके उसीका छाता बनाकर अपने आप को बचाते हुए एक जगह रुका जिसे महलों से महारानी ने देख लिया और महाराज से पूछा कि इतने गरीब लोग हमारे देश में रहते हैं क्या..? महारानी ने अर्ज किया कि उसके खाने-पीने का और रहने का सही इंतजाम करो!

राजा ने अपने कर्मचारी को भेजकर मम्मण सेठ को बुलाया लाया और पूछा कि तुम्हें क्या चाहिए मम्मण सेठ ने जवाब दिया कि उसके पास एक बैल तो है उसका जोड़ीदार चाहिए! राजा ने राज महल के अच्छे बैलों में से एक बैल को चुन लेने को कहा! लेकिन मम्मण सेठ को पसंद नहीं आया! आश्चर्यचकित राजा ने उसके एक बैल को देखने की इच्छा प्रकट की और जब हीरे जवाहरात जड़ित सोने के बैल देखा तो राजा हक्का-बक्का रह गया और कहा कि सारे राज्य को समर्पित करके भी इस सोने के बैल की बराबरी नहीं की जा सकती! सारांश यही है कि चारों कषायों का परित्याग करना चाहिए!

सुधा कंवर जी महाराज साहब के मुखारविंद से सम्यकत्व सूत्र के ज्ञान बोधि दर्शन बोधि और चारित्र बोधि का महत्व बताया! दो बार नमोत्थुणम पाठ से, द्रव्य मंगल और भाव मंगल से हमारे पापों को नष्ट करने के लिए परमात्मा की स्तुति की जाती है! चत्तारि मंगलम, अरिहंते मंगलम, सिद्धे मंगलम, साहु मंगलम, केवली पन्नतो धम्मों मंगलम, आदि पांच मंगलों की अंतःकरण से परमात्मा की स्तुति करने से हमारी आत्मा प्रफुल्लित हो जाती है! वीतराग ध्यान करने वाला वीतरागी बनता है और राग का ध्यान करने वाला रागी बनता है!

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