चेन्नई. एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा जीव की अकेले की ही गति और आगति होती है। यह विशाल पृथ्वी व विशाल संपत्ति के मालिक चक्रवर्ती राजा भी कुछ भी साथ लेकर नहीं जाने वाले हैं। इस सत्य को समझकर भावी प्राणियों को लोभ व तृष्णा को त्यागकर संतोष रूपी धन कमाना चाहिए। संसार में संतोष से बढक़र कोई भी धन होने वाला नहीं है।
इन्सान सबसे बड़ी मूर्खता व अज्ञानता तब करता है जब वह धन को ही सब कुछ मान लेता है। मानव पहले तो धन कमाने में अपना शरीर खराब कर लेता है और फिर शरीर को स्वस्थ करने के लिए धन को गंवा देता है। तृष्णा का तो कहीं भी ओर-छोर नहीं है इसकी उदरपूर्ति करना अत्यंत कठिन है। यह सैकड़ों दोषों को ढोये फिरती है। इससे बड़े-बड़े अधर्म हो जाते हैं।
साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा जिस प्रकार सभी मनोज्ञ काम-भोग एवं राज्य ऋद्धि मिल जाने पर भी क्षत्रियों की राज्य बढ़ाने की तृष्णा कभी खत्म नहीं हुई, उसी प्रकार संसार में अशुभ कर्म वाले प्राणी नाना प्रकार की योनियों में परिभ्रमण करते हुए भी निर्वेद प्राप्त नहीं करते यानी संसार भ्रमण से कभी उनको उद्वेग नहीं होता।
जब तक जीव को जन्म-मरण के चक्कर से थकावट महसूस नहीं होती सांसारिक दुखों से घबराहट नहीं होती तब तक उसके घट में वैराग्य व निर्वेद की ज्योति नहीं जल सकती। समकित के पांच लक्षण होते हैं-सम, संवेग, निर्वेद, अनुकंपा और आस्था। संचालन सज्जनराज बोहरा ने किया।