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तृप्ति भोग में नहीं, त्याग में है – साध्वी संयमलता

तृप्ति भोग में नहीं, त्याग में है – साध्वी संयमलता

 पनवेल श्री संघ में विराजित श्रमण संघीय जैन दिवाकरिया महासाध्वी श्री संयमलताजी म. सा.,श्री अमितप्रज्ञाजी म. सा.,श्री कमलप्रज्ञाजी म. सा.,श्री सौरभप्रज्ञाजी म. सा. आदि ठाणा 4 के सानिध्य में भक्तामर स्तोत्र के 21वे श्लोक का महामंगलकारी अनुष्ठान का आयोजन किया गया। धर्म सभा को संबोधित करते हुए महासती संयमलता ने अंग्रेजी वर्णमाला के द्वितीय अक्षर ‘B’ से ब्रह्मचर्य के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा- सबसे श्रेष्ठ तप ब्रम्हचर्य है। तृप्ति भोग में नहीं त्याग में है। जीवन ऊर्जा को भोग में नहीं, आत्म साधना में लगाए। सब दुखों से मुक्त होने के लिए ब्रह्मचर्य ही उत्कृष्ट साधन हैं। महासती ने आगे कहा -काम भोग विष सेवन समान है, भोगी पुरुष सदा रोगी ही बना रहता है, वह कभी भी योगी और सुखी नहीं हो सकता। ब्रम्हचर्य ही संपूर्ण शक्तियों का मूल मंत्र है। कामी पुरुष जीते जी ही नरक का अनुभव करने लगता है। वासनाओं के प्रति इतना लगाव होना बर्बादी का ही कारण होता है। ब्रह्मचर्य के पालन करता को कभी विटामिन की गोलियां खानी नहीं पड़ती। ब्रम्हचर्य ही परम औषधि है। वचन सिद्धि जैसी कई लब्धिया प्राप्त हो जाती है।

 महासती ने आगे कहा कि यदि कोई आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण करें तो फिर वह इस लोक में देव के तुल्य ही पूजनीय बन जाता है । स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, भगवान मल्लिनाथ, अरिष्ठनेमी भगवान, जंबू स्वामी, विजय सेठ विजया सेठानी, इसी उच्च श्रेणी के आदर्श ब्रह्मचारी महात्मा हुए हैं जिन्हें आज संसार पूजता है।

 महासती कमलप्रज्ञा ने कहा – अच्छा जीवन, अच्छा इंसान व्यक्ति के उच्च आचार उच्च विचार और श्रेष्ठ व्यवहार से बनता है। व्यक्ति की पहचान उसके पहनावे से नहीं उसके व्यवहार से होती है। व्यवहार को मधुर और शालीन बनाएं। आज भगवान पार्श्वनाथ मा पद्मावती एकासन में 200 से अधिक भाई बहनों ने भाग लिया। धर्म सभा में सुनीता सियाल ने 8 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए।

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